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Hemant Soren: सीएम हेमंत का सियासी सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा, 2009 में पार्टी की कमान संभाली, फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा, पढ़ें हेमंत का पूरा राजनीतिक सफरनामा

  • -दस अगस्त 1975 को हजारीबाग के पास नेमरा गांव में जन्मे हेमंत के शुरुआती जीवन पर उनके पिता झामुमो के सह-संस्थापक शिबू सोरेन की राजनीतिक विरासत का रहा प्रभाव

Ranchi. झारखंड के सबसे युवा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (49) का सियासी करियर उतार-चढ़ाव भरा रहा है, जिसमें उन्हें कानूनी लड़ाई से लेकर पार्टी में आंतरिक कलह तक का सामना करना पड़ा है. हालांकि, वह राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में मजबूती से उभरे हैं और खुद को आदिवासी अधिकारों के प्रबल पैरोकार के रूप में स्थापित किया है. दस अगस्त 1975 को हजारीबाग के पास नेमरा गांव में जन्मे हेमंत सोरेन के शुरुआती जीवन पर उनके पिता एवं झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के सह-संस्थापक शिबू सोरेन की राजनीतिक विरासत का प्रभाव रहा. हालांकि, हेमंत को शुरुआत में अपने पिता के उत्तराधिकारी के तौर पर नहीं देखा जाता था.

-2009 में हेमंत ने राज्य में पार्टी की कमान संभाली-

उनके बड़े भाई दुर्गा झारखंड की राजनीति में शिबू सोरेन के नामित उत्तराधिकारी थे, लेकिन 2009 में उनकी असामयिक मौत के बाद हेमंत ने राज्य में पार्टी की कमान संभाली. हेमंत ने पटना हाईस्कूल से इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा में दाखिला लिया, लेकिन पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी. हेमंत ने 2009 में राज्यसभा सांसद के रूप में अपनी सियासी पारी की शुरुआत की. हालांकि, 2010 में अर्जुन मुंडा के नेतृत्व वाली तत्कालीन भाजपा-झामुमो सरकार में उपमुख्यमंत्री बनने के लिए उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. वर्ष 2012 में भाजपा और झामुमो की राहें जुदा होने के बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.

2013 में पहली बार सबसे युवा मुख्यमंत्री बने-

जुलाई 2013 में हेमंत ने कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के समर्थन से 38 साल की उम्र में झारखंड के सबसे युवा मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली. हालांकि, उनका पहला कार्यकाल बहुत छोटा था. दिसंबर 2014 में भाजपा ने झारखंड की सत्ता में वापसी की और हेमंत विधानसभा में विपक्ष के नेता बने. साल 2016 में हेमंत के सियासी करियर में उस वक्त एक अहम मोड़ आया, जब भाजपा-नीत सरकार ने आदिवासी भूमि की रक्षा करने वाले कानूनों, मसलन-छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम, में संशोधन की कोशिश की. हेमंत ने आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए एक बड़े आंदोलन का नेतृत्व किया, जिससे न केवल उन्हें व्यापक समर्थन मिला, बल्कि सत्ता में उनकी वापसी का मंच भी तैयार हुआ.

2019 में एक बार फिर मुख्यमंत्री पद पर काबिज हुए-

हेमंत दिसंबर 2019 में कांग्रेस और राजद के सहयोग से एक बार फिर मुख्यमंत्री पद पर काबिज हुए. उनकी पार्टी ने झारखंड विधानसभा चुनाव में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए कुल 81 सीट में से 30 पर कब्जा जमाया, जो उनके नेतृत्व की बढ़ती लोकप्रियता की तरफ भी इशारा करता था. हालांकि, हेमंत का कार्यकाल विवादों से घिरा रहा है. वर्ष 2023 की शुरुआत में भूमि घोटाले से जुड़े कथित धनशोधन मामले में उनका नाम उछला. इस साल 31 जनवरी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के कुछ देर बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. झारखंड उच्च न्यायालय ने जून में यह कहते हुए हेमंत की जमानत अर्जी मंजूर कर ली कि उनके अपराध करने की कोई संभावना नहीं थी. हेमंत लगातार कहते आए हैं कि उनकी गिरफ्तारी राजनीति से प्रेरित थी और वह उनकी सरकार को गिराने की साजिश का शिकार हुए. इन चुनौतियों के बावजूद राज्य की आदिवासी आबादी के हक के लिए उनकी मुखर आवाज ने उनकी राजनीतिक पहचान को मजबूती दी. हेमंत ने कई ऐसी पहल की हैं, जिनका मकसद आदिवासियों को सशक्त बनाना और यह सुनिश्चित करना है कि उन्हें राज्य की आर्थिक वृद्धि का फायदा मिले.

कल्याणकारी योजनाएं घर-घर पहुंचायी-

उनके नेतृत्व में राज्य सरकार ने ‘आपके अधिकार, आपकी सरकार, आपके द्वार’ योजना शुरू की, जिससे सरकारी सेवाएं लोगों के दरवाजे तक पहुंच गईं. इसके अलावा, राज्य की पेंशन योजना के विस्तार और ‘मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना’ ने उनकी सरकार को और मजबूत किया. इस योजना के तहत आठ साल से 51 साल की महिलाओं को प्रतिमाह 1,000 रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है.हेमंत ने दावा किया कि सामाजिक कल्याण के प्रति उनकी सरकार की प्रतिबद्धता 2023 में घोषित किसान ऋण माफी से स्पष्ट है, जिसका उद्देश्य 1.75 लाख से अधिक किसानों को लाभ पहुंचाना है. इसके अलावा, उनकी सरकार ने बकाया बिजली बिल माफ कर दिया है और 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली प्रदान करने वाली योजना शुरू की है.

हेमंत का भाजपा से रहा विरोध-

अपने पूरे सियासी सफर में हेमंत को भाजपा के तीखे विरोध का सामना करना पड़ा है और उन्होंने केंद्र सरकार पर बिना उचित क्षतिपूर्ति के बार-बार झारखंड के संसाधनों का दोहन करने का आरोप लगाया है. हेमंत ने केंद्र पर 1.36 लाख करोड़ रुपये के कोयला खनन बकाये का भुगतान न करने का आरोप लगाया है. एक हालिया साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि केंद्र ने राज्य को दो दशक से अधिक समय तक नींबू की तरह निचोड़ा और झारखंड के गरीबों के हितों की कीमत पर अपना खजाना भरा.

अपनी पत्नी कल्पना के साथ 200 चुनावी रैलियां कीं-

भूमि घोटाले से जुड़े कथित धनशोधन मामले में जमानत पर रिहा होने के बाद तीसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले सोरेन ने अपनी पत्नी कल्पना के साथ पिछले दो महीनों में लगभग 200 चुनावी रैलियों को संबोधित किया. सोरेन ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)-नीत केंद्र सरकार पर अपनी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करने का आरोप लगाया. उन्होंने केंद्र सरकार को ‘अवैध शिकार मास्टर’ बताया, जो एक आदिवासी मुख्यमंत्री के पांच साल का कार्यकाल पूरा करने की बात नहीं पचा पा रही है. हेमंत को अपने सियासी सफर में झामुमो में आंतरिक कलह की मार भी झेलनी पड़ी. वर्ष 2022 में अवैध खनन पट्टे से जुड़े आरोपों के कारण वह विधायक के रूप में अयोग्य ठहराए जाने से बाल-बाल बचे और मुख्यमंत्री के रूप में अपना पद बरकरार रखने में भी कामयाब रहे. हेमंत का सियासी सफर झारखंड की आदिवासी आबादी के अधिकारों और सम्मान के लिए लड़ने के उनके दृढ़ संकल्प का प्रमाण है.

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