- डेड बॉडी को सिक्योरिटी के तौर पर रखे जाने पर डॉक्टरों व कानून विदों की राय अलग-अलग
Jamshedpur : देश भर में अक्सर प्राइवेट अस्पतालों (Private Hospitals) में वसूले जाने वाले चार्ज और बिल को लेकर हंगामा होने की खबरें मीडिया में आती रहती हैं. कई बार ऐसे भी मामले सामने आते हैं जब निजी अस्पताल बकाया नहीं चुकाने पर परिजनों को मरीज का शव देने से इनकार कर देते हैं. ऐसे में निजी अस्पतालों में महंगा इलाज कराने वाले आर्थिक रूप से कमजोर मरीजों के परिजनों के सामने कठित परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है. हालांकि बहुत कम लोगों को यह जानकारी है कि देश का कोई भी निजी अस्पताल पूरा बकाया बिल भरे जाने की शर्त पर डेड बॉडी (Dead Body) देने से इनकार नहीं कर सकता है. ऐसा करने पर उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है.
लौहनगरी के एक बड़े निजी अस्पताल प्रबंधन ने करंट से झुलसे युवक का शव देने से बीते दिनों इंकार कर दिया. यह कोई पहली बार नहीं हुआ है. यह मामला मीडिया की सुर्खियां बना. मानवता को शर्मसार करने वाली इस घटना तब हुई है जब राज्य में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार है और स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा मंत्री इरफान अंसारी संभाल रहे हैं जिन्होंने प्रभार लेने के बाद ही कहा था कि स्वास्थ्य सेवाओं में लापरवाही सहन नहीं की जायेगी और कानून का पालन हर हाल में सभी को करना होगा. तब सवाल उठता है कि क्या सरकार का कानून राज्य में निजी अस्पतालों के लिए अलग है ? अगर ऐसा नहीं है तो शव रोकने पर अस्पताल प्रबंधन के खिलाफ प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज करायी गयी ?
फिलहाल मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली झारखंड सरकार मईया योजना समेत कई कल्याणकारी योजनाओं को धरातल पर उतरने के दावें कर रही है. CSR के तहत निजी क्षेत्र की कंपनियों से फंडिंग कराकर योजनाओं को चलने का भी दावा किया जाता है. तब सवाल यह उठता है कि शहर के निजी अस्पताल ने अभिनव नामक युवक के शव को बिल भुगतान न होने की शर्त पर किन परिस्थितियों में दो दिनों तक रोके रखा? छोटागोविंदपुर यशोदा नगर स्थित श्री वैद्यनाथ महादेव शिव मंदिर कैंपस में 6 जनवरी को आठवीं के छात्र अभिनव की पतंग की डोर हाई टेंशन तार में फंस गई थी, जिसे चिंगारी निकली और अभिनव बुरी तरह से झुलस गया था. इलाज के दौरान निजी अस्पताल में अभिनव की 12 जनवरी को मौत हो गई थी.
सांसद की पहल पर बिल माफ तब मिला शव
मीडिया रिपोर्ट के अनुरूप सांसद विद्युत महतो की पहल पर अस्पताल प्रबंधन ने इलाज में आए खर्च को माफ कर मृतक का शव परिजनों को सौंपा. अब सवाल यह अगर किसी मरीज के परिजनों को सामाजिक रूप से प्रभावशाली लोगों का सहयोग नहीं मिले तो क्या उनके मरीज का शव उन्हें नहीं मिल पायेगा? इलाज के दौरान मौत होने की स्थिति में शव अस्पताल प्रबंधन रोके रहेगा? तो क्या गरीब मरीजों का अंतिम संस्कार नहीं हो पायेगा ? इस मामले में अगर सामाजिक दायित्वों को दरकिनार कर दिया जाये तो आखिर कानून क्या कहता है?
सिविल सर्जन ने नैतिकता बतायी लेकिन कानूनी पहलू पर मौन रहे
पूर्वी सिंहभूम जिले के सिविल सर्जन डॉक्टर साहिर पाल से निजी अस्पताल की कृत्य पर कानूनी रूप से स्वास्थ्य विभाग का पक्ष जानने का प्रयास जब लहर चक्र की टीम ने किया तो उन्होंनें नैतिकता का हवाला देते हुए शव रोके जाने की घटना को गलत करार दिया. हालांकि ऑन द रिकॉर्ड ऐसे मामलों में सरकारी अथवा कानूनी जानकारी पर वह मौन हो गये. हां उन्होंने यह जरूर कहा कि वह कुछ समय बाद इस बारे में विस्तृत जानकारी दे सकेंगे.
शव नहीं देने के मामलों में क्या कहता है कानून
साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ अस्पतालों को लेकर दिल्ली सरकार, डीडीए और एनजीओ सोशल ज्यूरिस्ट की ओर से डाली गई एसएलपी पर सख्त आदेश जारी किया था. यूनियन ऑफ इंडिया बनाम मूलचंद खैरातीराम ट्रस्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अरुण मिश्रा ने पैरा 70 में स्पष्ट कहा कि, ‘बड़े दुर्भाग्य की बात है कि कुछ ऐसे मामले सामने आए हैं जब कुछ निजी अस्पतालों ने बिल का पूरा पैसा न दिए जाने तक डेड बॉडी को सिक्योरिटी के तौर पर रख लिया है, यह पूरी तरह गैरकानूनी और आपराधिक कार्य है. सुप्रीम कोर्ट ने उस मामले में पुलिस को सख्त हिदायत दी कि अगर ऐसे मामले आते हैं तो अस्पताल प्रबंधन और वहां काम कर रहे डॉक्टरों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर कानूनी कार्रवाई करें.
सामाजिक व कानूनी राय अलग-अलग
निजी अस्पतालों के बिल का पूरा पैसा न दिए जाने तक डेड बॉडी को सिक्योरिटी के तौर पर रखे जाने के मामले में सामाजिक व कानूनी राय अलग-अलग है. कुछ लोग इसे पूरी तरह गैरकानूनी और आपराधिक कार्य मानते है तो कानूनी जानकारों का कहना है कि “शव को रोकना आईपीसी या सिविल कानून के तहत अपराध नहीं है, लेकिन अस्पताल ऐसा नहीं कर सकता और उसे शव को तुरंत परिजनों को सौंप देना चाहिए. अगर परिजन मेडिकल बिल का भुगतान करने से इनकार करते हैं, तो अस्पताल बाद में मरीज को अस्पताल लाने वाले रिश्तेदारों या दोस्तों के खिलाफ कोर्ट केस दर्ज कर सकता है.