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लूट मार्च की आखिरी दिन, लूट सके तो लूट! 

लूट मार्च की आखिरी दिन, लूट सके तो लूट!

मार्च के महीने का खासमखास विशेष ऐतिहासिक महत्व है क्योंकि भारतीय अस्मिता के प्रतीक महात्मा गांधी का दांडी मार्च इसी मार्च महीने में शुभारंभ हुआ था, और अंग्रेजों के चुले हिल गई थी।बड़ा खास और रसीला होता है यह महिना ,क्योंकि होली इसी महीने में आता है और सब कोई होलियाना मूड में आकर थोड़ा इधर-उधर कर बैठता है। इ सब तो ठीक है। पर कुछ और भी है जो मार्च को खास बनाता है। जी हां, वह है मार्च लूट! अंग्रेजों के बनाए नियमों के मुताबिक मार्च महीने के साथ ही सरकार का वित्तीय वर्ष खत्म हो जाता है। साल भर के आधे अधूरे लटके बिल मार्च एण्ड होने से पहले जैसे-तैसे पास हो ही जाते हैं। लिहाजा जैसे जैसे मार्च एंडिंग नजदीक आता है वैसे वैसे सरकारी विभागों के अधिकारी एलर्ट मोड में आ जाते हैं। कहावत है, उठ जाग मुसाफिर भोर भयी। जो सोवत है वह खोवत है । विभागों के अधिकारी जिला कोषागार से मौजूदा वित्तीय वर्ष की योजनाओं से जुड़ी राशि की
निकासी के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाते हुए सुपर एक्टिव हो उठते हैं। जो लूट सके सो लूट।इससे पहले कि कलेंडर में तारिख चेंज हो जाये। इससे पहले कि निकासी बंद हो जाये। खजाना बटोर लिया जाए।बहरहाल,एक बार फिर वहीं नजारा देखने में आ रहा है। वित्तीय वर्ष का आज अंतिम दिन है। राज्य के जिला कोषागार में आज का अद्भुत नजारा रहेगा। सामान्य दिनों में सामान्य रहने, दिखने और सामान्य तरीके से भी सामान्य ढंग से काम करने वाले जिला कोषागार अधिकारी असामान्य रूप से गतिशील दिखे। तेवर ऐसे कि जहां उनको हस्तक्षेप नहीं करना है वहां भी पावरफुल दिखाई दिये। मार्च लूट के पूरी गतिविधियों पर नजर रखा जा रहा है। आज की दिन और रात अभीबाकी है। नया आंवटन भी आया है। देख रहे हैं।पूरे वित्तीय वर्ष में जो आंवटित राशि नहीं खर्च हो सका वह एक दिन में कौन सी जादूई टेक्नोलॉजी के तहत खर्च जायेगा।
ए के मिश्र

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