
गुवा. सारंडा वन्यजीव अभयारण्य को लेकर लेकर झारखण्ड राज्य पूर्व मुख्य मंत्री मधु कोड़ा ने अपने गुवा आवास में साक्षत्कार में कहा कि कि राज्य सरकार सारंडा वाइल्डलाइफ सेंक्चुरी को लेकर भ्रम फैलाकर ग्रामीणों को सर्वोच्च न्यायालय के खिलाफ खड़ा कर दिया है.
राज्य सरकार अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं करके ग्रामीणों को आगे कर राजनीति कर रही है.
उन्होंने कहा कि सारंडा वन्यजीव अभयारण्य को लेकर पांच मंत्रियों का समूह सारंडा के लोगों का सामाजिक प्रभाव विश्लेषण को लेकर बैठक कर रहा है. लेकिन विडम्बना यह है कि उक्त कमिटी में कोई भी पर्यावरणविद, वनस्पति शास्त्री, भूगर्भ जल शास्त्री, पक्षी विज्ञान और मानव विज्ञान शास्त्री नहीं है. ऐसे में अभयारण्य से सारंडा वासियों के लाभ हानि का विश्लेषण कौन करेगा?

आगे कहा कि झारखण्ड सरकार को 8 अक्टूबर के पूर्व अभयारण्य से संबंधित अधिसूचना जारी करने का आदेश सर्वोच्च न्यायालय ने दिया है. राज्य सरकार 29अप्रैल 2025 को न्यायालय में 575.14 हेक्टेयर वन क्षेत्र वन्यजीव अभयारण्य के रूप में अधिसूचित करने का हलफनामा प्रस्ताव दिया है. ऐसे में सारंडा क्षेत्र में पांच मंत्रियों के समूह का सामाजिक प्रभाव विश्लेषण करने का क्या औचित्य है ?
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि राज्य सरकार 7 अक्टूबर तक आदेश का अनुपालन नहीं करता है तो मुख्य सचिव के पर कार्रवाई भी हो सकती है. लेकिन कुछ तथाकथित समूह द्वारा सारंडा वन क्षेत्र में साल 1980 से वनाधिकार पट्टा की आस में बसे ग्रामीणों को गांव गांव से हजारों की संख्या में लाकर विरोध जैसा स्थिति बनाकर खनन कंपनियों को लाभ पहुँचाने का सुनियोजित प्रयास है.
