
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि शादी से इनकार करना आत्महत्या के लिए उकसाने के बराबर नहीं है. यह फैसला एक महिला के खिलाफ लगाए गए आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपों पर आया है. महिला पर आरोप था कि उसने अपनी टिप्पणियों और अपने बेटे द्वारा शादी से इनकार किए जाने के कारण एक युवती को आत्महत्या के लिए उकसाया. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में महिला के खिलाफ कोई ठोस सबूत न मिलने के कारण आरोपों को खारिज कर दिया.
यह मामला एक युवती की आत्महत्या से जुड़ा था, जो एक युवक से प्रेम करती थी. यह युवक आरोपी महिला का बेटा था. युवती ने युवक से शादी करने की इच्छा जताई थी, लेकिन युवक ने शादी से इनकार कर दिया. इसके बाद, युवती ने आत्महत्या कर ली और उसके परिवार ने आरोप लगाया कि महिला ने अपनी टिप्पणियों और शादी से मना करने के कारण युवती को आत्महत्या के लिए उकसाया.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर विचार करते हुए कहा कि केवल शादी से इनकार करना आत्महत्या के लिए उकसाने का कारण नहीं हो सकता. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर सभी तथ्यों को सही माना जाए, तो भी महिला के खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं हैं. जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने कहा कि आरोपी महिला के कृत्य इतने अप्रत्यक्ष थे कि उन्हें भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306, जो आत्महत्या के लिए उकसाने से संबंधित है, के तहत अपराध नहीं माना जा सकता.
कोर्ट ने यह भी कहा कि अपीलकर्ता के खिलाफ ऐसा कोई ठोस आरोप नहीं था, जिससे यह साबित होता कि युवती के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि महिला ने युवती पर शादी के लिए दबाव नहीं डाला था, और यह भी नहीं कहा था कि अगर युवती अपने प्रेमी से शादी नहीं करती, तो उसे मर जाना चाहिए.
कोर्ट की टिप्पणी : अपमानजनक शब्द उकसावा नहीं
कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि यह कहना कि यदि युवती अपने प्रेमी से शादी किए बिना नहीं रह सकती तो उसे मर जाना चाहिए, इसे आत्महत्या के लिए उकसावा नहीं माना जा सकता. हालांकि, कोर्ट ने यह माना कि अगर महिला ने युवती के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां की थीं, तो वह निश्चित रूप से अनुशासनहीनता के दायरे में आता है, लेकिन इसका कोई संबंध युवती के आत्महत्या करने से नहीं जोड़ा जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि सिर्फ शादी से इनकार करना या किसी रिश्ते को समाप्त करने की बातें आत्महत्या के लिए उकसाने का कारण नहीं बन सकतीं. आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में केवल अप्रत्यक्ष टिप्पणियों और दबावों को अपराध नहीं माना जा सकता, जब तक इस बात के ठोस साक्ष्य न हो कि आत्महत्या करने के लिए पीड़ित के पास कोई अन्य विकल्प नहीं था.
इस फैसले से यह संदेश मिलता है कि कानून में किसी भी आरोप को साबित करने के लिए ठोस प्रमाण और साक्ष्य की आवश्यकता होती है और केवल भावनात्मक टिप्पणियां या अप्रत्यक्ष बयान इस तरह के गंभीर आरोपों के लिए पर्याप्त आधार नहीं बन सकते.
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय इस बात को भी रेखांकित करता है कि हर घटना को ध्यान से और तथ्यों के आधार पर देखा जाना चाहिए. केवल आरोपों या कयासों के आधार पर किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता.
