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आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से जमशेदपुर के गदरा स्थित आश्रम में आयोजित नीलकंठ दिवस पर “बाबा नाम केवलम” अखंड कीर्तन आयोजित, नीलकंठ दिवस पर 300 नारायणों को कराया भोजन एवं चिकित्सा शिविर में इलाज के साथ उपलब्ध कराई गई दवा

जमशेदपुर 12 फरवरी 2023

आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से आनंद मार्ग आश्रम गदरा में नीलकंठ दिवस मनाया गया इस अवसर पर 3 घंटे का “बाबा नाम केवलम “अखंड कीर्तन का आयोजन किया गयाl नीलकंठ दिवस के अवसर पर इस अवसर पर आश्रम में लगभग 300 नारायणो को भोजन कराया गया एवं एक चिकित्सा शिविर में डॉ आशु के द्वारा चिकित्सा कर उचित दवा दिया गयाl

दूसरी ओर सोनारी कबीर मंदिर के पास गदड़ा आनंद मार्ग जागृति में
नीलकंठ दिवस के अवसर पर 265 वा मोतियाबिंद ऑपरेशन के लिए जांच शिविर का आयोजन पुर्णिमा नेत्रालय के सहयोग से आयोजित किया गया दोनों कैंप मिलाकर लगभग 120 लोगों की आंखों की जांच हुई,इसमें लगभग 55 रोगी मोतियाबिंद के लिए चयनित हुए जिनका ऑपरेशन 16फरवरी एवं 21 फरवरी को पूर्णिमा नेत्रालय में किया जाएगाl
पिछले दिनों ऑपरेशन चयनित लगभग 6 लोगों का निशुल्क ऑपरेशन कर लेन्स लगाया गया एवं दवा एवं चश्मा देकर सोनारी घर पहुंचा दिया गयाl

सोनारी एवं गदरा में
नीलकंठ दिवस के अवसर पर लगभग एक सौ लोगों के बीच फलदार पौधे का वितरण किया गया अमरूद, कटहल ,आम ,आंवला, पपीता एवं छोटे पौधे फूल के भी वितरित किए गए l
आचार्य पारसनाथ ने नीलकंठ दिवस के अवसर पर कहां की
12 फरवरी 1973 को आनंद मार्ग के संस्थापक गुरु श्री श्री आनंदमूर्ति जी को बिहार के पटना बांकीपुर सेंट्रल जेल में इंदिरा की तानाशाही कांग्रेस सरकार के द्वारा चिकित्सा के नाम पर दवा के रूप में जहर दिया गया था इसका असर पूरे शरीर पर प्रकृति के अनुकूल पड़ा l श्री श्री आनंदमूर्ति जी के पूरे शरीर सिकुड़ गई आंखों की रोशनी चली गई, सर के बाल उड़ गए,सभी दांत झड़ गए,उसके बावजूद भी गुरु श्री श्री आनंद मूर्ति जी जीवित रहे l12 फरवरी के दिन आनंद मार्गी पूरे विश्व में नीलकंठ दिवस के रूप में मनाते हैं, इस ऐतिहासिक दिन के अवसर पर आनंद मार्ग के संस्थापक के जीवन के विषय में बताते हुए आचार्य पारसनाथ ने कहा कि श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने विष का पान कर दुनिया को यह बतला दिया कि दुनिया मे कितनी कड़ी से कड़ी मुसीबत आए उसका का सामना उसका सामना हर नैतिकवान पुरुष को करना होगा ना कि मैदान छोड़कर भाग जाना होगाl मुसीबत को उपहार के रूप में स्वीकार करना होगा तभी मनुष्य अपने जीवन में बड़ा से बड़ा कार्य कर सकता है l
सुख और दुख दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जहां सुख है वहां दुख भी हैl केवल सुख रहने से ही जीवन का अनुभव कभी नहीं हो सकता, दुख का आना भी मनुष्य के जीवन में जरूरी है क्योंकि इससे मनुष्य को तथा आने वाली पीढ़ी को मुसीबत का सामना कैसे किया जाए सीखने का मौका मिलता है

इस कार्यक्रम में भुक्ति प्रधान सुधीर आनंद, देवव्रत, धर्मदेव सिंह , कार्तिक महतो, अमित एवं सुनील आनंद तथा अन्य लोगों का भी सहयोग रहाl

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