झारखंड में राजभवन और झारखंड सरकार में गहराता विवाद! पूर्व राज्यपाल द्रोपति मुर्मू के समय से ही होता आ रहा है टकराव?
झारखंड में जनजातीय परामर्शदातृ परिषद (टीएसी) के गठन से संबंधित नियमावली को लेकर राज्यपाल रमेश बैस के रुख से राजभवन और राज्य सरकार के बीच टकराव गहराता जा रहा है। राज्यपाल रमेश बैस द्वारा कानूनी सलाह लेने के बाद संबंधित फाइल राज्य सरकार को वापस लौटा दी है। साथ ही वर्तमान नियमावली को असंवैधानिक बताते हुए उनमें बदलाव के निर्देश दिए हैं। उन्होंने कहा है कि टीएसी के गठन में कम से कम दो सदस्यों का मनोनयन उनके स्तर से अनिवार्य रूप से होना चाहिए। लेकिन टीएसी नियमावली का मामला राज्य सरकार के पाले में है। राज्य सरकार राज्यपाल के निर्देश पर नियमावली में संशोधन कर सकती है तथा इसपर राजभवन की स्वीकृति ले सकती है। यदि ऐसा होता है तो भाजपा पूर्व के निर्णय पर राज्य सरकार को घेर सकती है। यदि राज्य सरकार इसपर चुप्पी साधती है तथा नई नियमावली के तहत गठित टीएसी की बैठकें जारी रहती हैं और उसके निर्णय लागू होते हैं तो राजभवन इसपर और कड़ा रुख अख्तियार कर अपना सकता है। राज्यपाल के माध्यम से यह मामला पुनः राष्ट्रपति तक जा सकता है। पूर्व राज्यपाल पूर्व में भी राजभवन की स्वीकृति बिना टीएसी का गठन किए जाने की जानकारी राष्ट्रपति को दे चुके हैं।
- द्रौपदी मुर्मू के समय से ही चल रहा विवाद टीएसी के गठन का विवाद तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के समय से ही चल रहा है। दरअसल, तत्कालीन राज्यपाल के रूप में द्रौपदी मुर्मू ने मनोनीत किए गए सदस्यों के आचरण का प्रमाण पत्र मांगा था। साथ ही राजभवन से दो सदस्यों के मनोनयन नहीं होने पर सवाल उठाया था। इस बीच राज्य सरकार ने टीएसी के गठन को लेकर नई नियमावली गठित कर दी। प्राप्त जानकारी के अनुसार नई नियमावली की फाइल राजभवन की स्वीकृति के लिए भी नहीं भेजी गई। नई नियमावली में अब टीएसी के गठन और सदस्यों की नियुक्ति में राज्यपाल के पास कोई अधिकार नहीं रह गया है। मुख्यमंत्री की स्वीकृति से ही सदस्यों की नियुक्ति हो रही है। राज्य सरकार द्वारा कहा गया कि नई नियमावली छत्तीसगढ़ की तर्ज पर बनाई गई जहां सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार मुख्यमंत्री का है। राज्यपाल और सरकार के बीच बढ़ते विवाद क्या रूप लेगा और कब रुकेगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा l
एके मिश्र