
New Delhi. टाटा समूह की कंपनियों का नियंत्रण करने वाले टाटा ट्रस्ट के विभिन्न ट्रस्टी के बीच जारी खींचतान के बीच शुक्रवार को ट्रस्ट के निदेशक मंडल की बैठक आयोजित की गई. इस बैठक में ट्रस्ट से संबंधित रोजमर्रा के मुद्दों पर चर्चा की गई और किसी भी विवादास्पद विषय को नहीं उठाया गया. एक सूत्र ने कहा कि यह एक सामान्य बैठक थी और इसमें कोई भी विवादास्पद मुद्दा नहीं उठाया गया. बैठक में विभिन्न अस्पतालों और ग्रामीण विकास परियोजनाओं के बारे में प्रस्तुतियां दी गईं. सूत्र ने यह भी बताया कि बैठक में पिछले किसी विवाद का उल्लेख नहीं किया गया.
यह बैठक टाटा ट्रस्ट के शीर्ष नेतृत्व के मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात के बाद हुई है. टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन नोएल टाटा और टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन ने मंगलवार को शाह और सीतारमण से मुलाकात की थी.
संपर्क करने पर टाटा ट्रस्ट ने बैठक के ब्योरे को लेकर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. हालांकि, विभिन्न रिपोर्ट में कहा गया है कि बैठक का एजेंडा मुख्य रूप से नियमित परमार्थ गतिविधियों और स्वास्थ्य देखभाल परियोजनाओं के लिए वित्तीय प्रस्तावों की समीक्षा पर केंद्रित था. यह बैठक टाटा ट्रस्ट के ट्रस्टी के बीच बोर्ड नियुक्तियों और प्रशासन संबंधी विवाद के बीच हुई है, जो लगभग 180 अरब डॉलर के समूह के कार्यों को प्रभावित कर सकता है.

सूत्रों के अनुसार, टाटा ट्रस्ट इस समय दो गुटों में बंट गया है. एक गुट नोएल टाटा के साथ है. नोएल टाटा को रतन टाटा के निधन के बाद ट्रस्ट का चेयरमैन नियुक्त किया गया था. दूसरे गुट में चार ट्रस्टी शामिल हैं जिनका नेतृत्व मेहली मिस्त्री कर रहे हैं. उनका संबंध शापूरजी पलोनजी परिवार से है. शापूरजी पलोनजी परिवार टाटा संस में लगभग 18.37 प्रतिशत हिस्सा रखता है. रिपोर्ट के मुताबिक, मेहली मिस्त्री को यह लगता है कि उन्हें महत्वपूर्ण मामलों से बाहर रखा गया है. सूत्रों के मुताबिक, विवाद का मुख्य कारण टाटा संस के निदेशक मंडल में नियुक्तियां हैं. टाटा संस ही 156 साल पुराने समूह का नियंत्रण करने वाली प्रवर्तक कंपनी है.



