Jamshedpur. पूर्व खाद्य आपूर्ति मंत्री सह निर्दलीय विधायक सरयू राय ने रविवार को बिष्टुपुर आवासीय कार्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर स्पष्ट किया कि खाद्य आपूर्ति विभाग की पूर्व प्रकाशित आहार पत्रिका में कोई घोटाला नहीं हुआ है. उन्होंने मंत्री बन्ना गुप्ता को चुनौती देते हुए कहा कि वे आहार पत्रिका प्रकाशन के मामले में एक पैसे की भी गड़बड़ी प्रमाणित कर दें, जबकि उन्होंने एमपी-एमएलए कोर्ट में उनके खिलाफ चल रहे मानहानि केस में उनसे गवाही देने के लिए जाने की चुनौती दे चुके हैं. उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत झारखंड सरकार में आहार पत्रिका का प्रकाशन होना था. इसके लिए वे खाद्य आपूर्ति मंत्री के रूप में सूचना जनसंपर्क से दर लेकर पत्रिका प्रकाशन का आदेश नियमानुसार दिया.
इसमें योग्य संपादक रखने की बात थी. इसके लिए 70 हजार से लेकर एक लाख रुपये तक के मानदेय में उनके निजी सचिव आनंद कुमार को चुना, ताकि बिना अतिरिक्त खर्च के आहार पत्रिका का सारा काम हो सके. करीब तीन महीने यह काम चला, लेकिन विभाग में डॉ अमिताभ कौशल सचिव बने और उन्होंने पूर्व के अंकों सहित आगे के लिए यह काम टेंडर से कराने का सुझाव दिया था. तब उन्होंने सचिव के सुझाव को मानते हुए आहार पत्रिका का काम खाद्य आपूर्ति निदेशालय को दे दिया. टेंडर में एल-वन के आधार पर एक एजेंसी चुनी गयी, जो पहले काम कर रही थी.
इस तरह इसमें कोई घोटाला हुआ ही नहीं. जहां तक सुनील शंकर की बात है, तो वे विभाग के मार्केटिंग ऑफिसर थे. उन्हें सचिव के परामर्श से रखा गया था. उन्हें बतौर खाद्य आपूर्ति मंत्री रामेश्वर उरांव ने सेवा विस्तार दिया. अगर गड़बड़ी नियुक्ति थी, तो उनके कांग्रेसी मंत्री ने कैसे सेवा विस्तार दिया था. कुल मिलाकर आहार पत्रिका में किसी प्रकार के घोटाले की बातें वर्तमान खाद्य आपूर्ति मंत्री बन्ना गुप्ता के बे-सिर पैर जैसी है. विधायक ने मनोज सिंह से जुड़े एक सवाल पूछने पर बताया कि मनोज सिंह रांची में हिस्ट्रीशीटर सुरेन्द्र बंगाली के शागिर्द थे, जो वर्तमान में कांग्रेस नेताओं के साथ घूमते देखे जा रहे हैं. उन्होंने कहा, मनोज सिंह ग्राम्या एनजीओ गुमला के पदधारक बीके सिंह के साढ़ू हैं. मंत्री बन्ना गुप्ता के आरोपों पर उन्होंने बताया कि उन्होंने गुमला में काम करते हुए ही चारा घोटाले को उजागर किया था.
इसके कारण लालू यादव उनसे नाराज हो गये थे. उन्होंने बताया कि उक्त ग्राम्या एनजीओ के सचिव बीके सिंह, जो जमींदार थे, उनके खिलाफ सीलिंग के तहत कार्रवाई हुई थी. उस दौरान ग्राम्या एनजीओ के कामकाज की जांच करायी थी, लेकिन कोई गड़बड़ी नहीं मिली थी. उन्हें ऐसा लगा कि उनके कारण ही बीके सिंह पर कार्रवाई हो रही है. इस वजह से एनजीओ छोड़ दी और बाद में ग्राम्या एनजीओ के अध्यक्ष पद पर बीके सिंह संभाले थे. बावजूद कोई चाहे इसकी जांच करा सकते हैं.