Ranchi. झारखंड हाइकोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने नाैकरी से हटाये जाने या बर्खास्तगी के बाद कर्मी के अर्जित अवकाश के नगदीकरण (लीव इनकैशमेंट मिलेगा या नहीं) से संबंधित याचिका पर सुनवाई की. इस दाैरान प्रार्थी व प्रतिवादियों की ओर से पक्ष रखा गया. मामले में सुनवाई जारी रही. मामले की अगली सुनवाई 18 फरवरी को होगी. संविधान पीठ में चीफ जस्टिस एमएस रामचंद्र राव, जस्टिस आनंद सेन, जस्टिस राजेश शंकर, जस्टिस दीपक रोशन व जस्टिस गाैतम कुमार चाैधरी शामिल थे.इससे पूर्व प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता संतोष कुमार सोनी ने बताया कि सेवानिवृत्ति से पहले सेवा से हटाये जाने के बाद भी अर्जित अवकाश का नगदीकरण का लाभ मिलेगा. क्योंकि अर्जित अवकाश सैलरी का हिस्सा होता है.

वहीं हाइकोर्ट की ओर से अधिवक्ता सुमित गाड़ोदिया ने बताया कि पूर्व में दूधनाथ पांडेय के मामले में तीन न्यायाधीशों की लॉर्जर बेंच ने लीव इनकैशमेंट मामले में जो फैसला दिया था, वह सही नहीं है. राज्य सरकार का नियम ही लागू होगा. राज्य सरकार का नियम कहता है कि सेवानिवृत्ति के बाद ही अर्जित अवकाश का नगदीकरण मिलेगा. सेवा से हटाने या बर्खास्त होने के बाद कर्मी को अर्जित अवकाश के भुगतान का दावा मान्य नहीं है. प्रार्थी को अर्जित अवकाश का नगदीकरण का लाभ नहीं मिलेगा, क्योंकि उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है. मामले में एमीकस क्यूरी अधिवक्ता इंद्रजीत सिन्हा ने पैरवी की.
उल्लेखनीय है कि प्रार्थी चतरा के बर्खास्त जिला जज (सीनियर डिवीजन) ने याचिका दायर की है. उन्होंने लीव इनकैशमेंट व उसका ब्याज देने की मांग की है. उन्हें वर्ष 2013 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. अपनी बर्खास्तगी आदेश को उन्होंने हाइकोर्ट में चुनाैती दी थी, जो खारिज हो गयी. बाद में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, वहां से भी उन्हें राहत नहीं मिली.
