गुमला. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने बृहस्पतिवार को कहा कि आत्म-विकास करते समय एक मनुष्य अतिमानव (सुपरमैन) बनना चाहता है, इसके बाद वह देवता और फिर भगवान बनना चाहता है और विश्वरूप की भी आकांक्षा रखता है लेकिन वहां से आगे भी कुछ है क्या, यह कोई नहीं जानता है. उन्होंने कहा कि कुछ लोगों में मनुष्य होने के बावजूद मानवीय गुणों का अभाव होता है और उन्हें सबसे पहले अपने अंदर इन गुणों को विकसित करना चाहिए.
यहां गैर-लाभकारी संगठन विकास भारती द्वारा आयोजित ग्राम स्तरीय कार्यकर्ता बैठक को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि लोगों को मानव जाति के कल्याण के लिए अथक प्रयास करना चाहिए, क्योंकि विकास और मानव महत्वाकांक्षा का कोई अंत नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘‘मानवीय गुणों को विकसित करने के बाद एक मनुष्य अलौकिक बनना चाहता है, ‘सुपरमैन’ बनना चाहता है, लेकिन वह वहां रुकता नहीं है। इसके बाद उसे लगता है कि देवता बनना चाहिए लेकिन देवता कहते है कि हमसे तो बड़ा भगवान है और फिर वह भगवान बनना चाहता है.भगवान कहता है कि वह तो विश्वरूप है तो वह विश्वरूप बनना चाहता है.वहां भी कुछ है क्या रुकने की जगह, ये कोई नहीं जानता है. लेकिन विकास का कोई अंत नहीं है. बाहर का विकास भी और अंदर का विकास भी, यह निरंतर चलने वाली एक प्रक्रिया है.
उन्होंने कहा, बदलते समय में अपने काम और सेवाओं को जारी रखने के लिए हमें नए तौर-तरीके अपनाने होंगे. जो लोग अपने स्वभाव को बरकरार रखते हैं, उन्हें विकसित कहा जाता है।’’ भागवत ने कहा, सभी को समाज के कल्याण के लिए अथक प्रयास करना चाहिए और जो लोग सही मायने में काम कर रहे हैं, उन्हें मंच से बोलना चाहिए जबकि हमें बैठकर सुनना चाहिए.
उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासी पिछड़े हुए हैं और उनके लिए शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी काम किये जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा, वन क्षेत्रों में जहां आदिवासी पारंपरिक रूप से रहते हैं, वहां के लोग शांत और सरल स्वभाव के होते हैं और ऐसा बड़े शहरों में नहीं मिलता. यहां तो मैं गांव वालों पर आंख मूंदकर भरोसा कर सकता हूं, लेकिन शहरों में हमें सतर्क रहना पड़ता है कि हम किससे बात कर रहे हैं. भागवत ने कहा कि वह देश के भविष्य को लेकर कभी चिंतित नहीं रहे, क्योंकि कई लोग इसकी बेहतरी के लिए सामूहिक रूप से काम कर रहे हैं.