सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी कि कर्मचारियों के विभिन्न समूह अलग-अलग नियमों के दायरे में आते हैं और समान योग्यता प्राप्त करने पर भी वे समान लाभ के पात्र नहीं हैं. न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने इसी के साथ दिल्ली उच्च न्यायालय के 21 जुलाई, 2010 के आदेश और केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के 2003 के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) को पीएचडी डिग्री प्राप्त करने पर अपने तकनीकी कर्मचारियों को वैज्ञानिकों के समान 1999 की योजना का लाभ देने के लिए कहा गया था. आईसीएआर द्वारा 27 फरवरी, 1999 को शुरू की गई योजना के तहत, कोई वैज्ञानिक अपनी सेवा के दौरान पीएचडी की डिग्री प्राप्त करने पर दो अग्रिम वेतन वृद्धि का पात्र था.
आईसीएआर ने अपने तकनीकी कर्मचारियों को इस योजना का लाभ देने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि इसमें दो सेवाएं शामिल हैं, अर्थात् कृषि अनुसंधान सेवा (एआरएस) और तकनीकी सेवा (टीएस), तथा दोनों सेवाएं अपने स्वतंत्र नियमों द्वारा संचालित होती हैं, जिनमें अलग-अलग संवर्ग और अलग-अलग पदोन्नति के अवसर हैं.
शीर्ष अदालत की पीठ ने आईसीएआर की इस दलील को स्वीकार किया कि महज पीएचडी योग्यता प्राप्त करने के बाद तकनीकी कार्मिक दो अग्रिम वेतन वृद्धि के लिए पात्र नहीं होंगे जबकि उनके लिए इसकी सिफारिश नहीं की गई है. न्यायालय ने अपने फैसले में कहा, ‘‘कर्मचारियों के विभिन्न समूह, जो सहायता करते हुए काम कर रहे हैं, लेकिन अलग-अलग नियमों के दायरे में आते हैं और उनके अलग-अलग कर्तव्य हैं तथा केवल इसलिए कि वे भी उस योग्यता को प्राप्त कर लेते हैं, उन लाभों के हकदार नहीं होंगे जो सक्षम प्राधिकारी द्वारा कर्मचारियों के विभिन्न समूहों को दिए गए थे.
पीठ ने कहा कि किसी भी संस्थान में किसी विशेष श्रेणी के कर्मचारियों को उनकी नौकरी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए सेवा के दौरान उच्च योग्यता प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहन दिया जा सकता है. शीर्ष अदालत ने कहा, केवल इसलिए कि अध्ययन अवकाश विनियम, 1991 का विस्तार तकनीकी कर्मियों तक किया गया, इससे उन्हें अन्य लाभ प्राप्त करने का अधिकार नहीं मिलेगा जो वैज्ञानिकों को उपलब्ध हैं। तकनीकी कर्मियों को पीएचडी करने के लिए अध्ययन अवकाश देने का विचार केवल उन्हें अपनी योग्यता में सुधार करने में सक्षम बनाने के लिए था.