Jamshedpur. बिष्टुपुर के गोपाल मैदान में आयोजित पांच दिवसीय जनजातीय महोत्सव संवाद के चौथे दिन का नजारा अद्भुत रहा. हाजोंग, राभा, बाइगा और नेगी जनजातियों के कलाकारों ने अपनी सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से मानो ग्रामीण भारत की आत्मा का दर्शन करा दिया. उनके लोकगीत और संगीत से सजी नृत्य की प्रस्तुतियों ने दर्शकों को ऐसा सम्मोहित किया, जैसे वे प्रकृति की गोद में लौट आए हों. मंच पर जब कलाकार उतरे, तो उनके पारंपरिक वस्त्र, आभूषण और सौंदर्य ने ग्रामीण भारत के सांस्कृतिक वैभव को बखूबी दर्शाया. उनके गीतों में, खेत-खलियान, नदी, जंगल व पर्वत की गूंज थी. उनके संगीत में पंछियों की चहचहाहट और हवा की सरसराहट ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया.
उनकी प्रस्तुतियों में प्रकृति व धरती माता के प्रति अगाध प्रेम और कृतज्ञता झलक रही थी. हर ताल और हर गीत मानो धरती मां की आराधना कर रहा था. हिमाचल की नेगी समुदाय के गीतों में जल और भूमि की कहानियां थीं, तो असम की राभा कलाकारों की धुनों में जीवन का उल्लास. मध्य प्रदेश की बाइगा जनजाति का नृत्य ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो धरती का कंपन हो और नागालैंड की कोन्या जनजाति ने अपने गीतों व विजयी नृत्य से दर्शकों के मन में शांति का संचार किया. दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट से कलाकारों का उत्साह बढ़ाया. बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक हर कोई इस सांस्कृतिक समागम का आनंद ले रहा था. संवाद के इस मंच ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत की विविधता में एक अनूठी एकता है. जनजातीय परंपराओं का यह उत्सव ग्रामीण भारत की आत्मा का सजीव चित्रण था, जो आधुनिक जीवन की आपाधापी में गुम हो रही जड़ों से हमें पुनः जोड़ने का प्रयास कर रहा है.
संवाद में ट्राइबल फिल्म मेकर्स की एक गोष्ठी का आयोजन किया. इसमें ट्राइबल फिल्म और टेक्नोलॉजी पर मंथन हुआ. फिल्म मेकर्स ने अपने-अपने अनुभव को साझा किये. ट्राइबल फिल्म मेकर्स ने कहा कि आधुनिक तकनीक ट्राइबल फिल्म मेकर्स के लिए बड़ी मददगार साबित हो रही है. सस्ती और सुलभ टेक्नोलॉजी ने उन्हें उच्च गुणवत्ता वाली फिल्में बनाने का अवसर दिया है. ड्रोन, स्मार्टफोन, एडिटिंग सॉफ्टवेयर और डिजिटल कैमरों के उपयोग से वे अपने कलात्मक विचारों को आसानी से साकार कर रहे हैं. वक्ताओं ने कहा कि अच्छा कंटेंट तकनीक से और निखर जाता है, क्योंकि यह फिल्म की प्रस्तुति को बेहतर और प्रभावी बनाता है.