प्रभात संगीत दिवस के अवसर पर
पुरोधा प्रमुख श्रद्धेय आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत ने साधकों को ऑनलाइन संबोधित किया। जमशेदपुर एवं आसपास के लगभग तीन हजार से भी ज्यादा आनंद मार्गी मोबाइल ,लैपटॉप एवं अन्य अत्याधुनिक माध्यमों से वेब टेलीकास्ट प्रवचन का लाभ उठाया l आज के दिन पूरे विश्व में प्रभात संगीत दिवस मनाया जा रहा है ,पूरा विश्व के कलाकार अपने-अपने घर पर वैश्विक महामारी क्रोना वायरस के दुष्प्रभाव के कारण घर बैठे ही ऑनलाइन कला का प्रदर्शन कर रहे हैंंl
पुरोधा प्रमुख श्रद्धेय आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत ने साधकों को ऑनलाइन संबोधित कियाl आज से लगभग 7000 वर्ष पूर्व भगवान सदाशिव ने सरगम का आविष्कार कर मानव मन के सूक्ष्म अभिव्यक्तियों को प्रकट करने का सहज रास्ता खोल दिया था। इसी कड़ी में 14 सितंबर 1982 को झारखंड राज्य के देवघर में आनंद मार्ग के प्रवर्तक भगवान श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने प्रथम प्रभात संगीत” *बंधु हे निये चलो”* बांग्ला भाषा में देकर मानव मन को भक्ति उनमुख कर दिया।
8 वर्ष 1 महीना 7 दिन के छोटे से अवधि में उन्होंने 5018 प्रभात संगीत का अवदान मानव समाज को दिया। आशा के इस गीत को गाकर कितनी जिंदगियां संवर गई। प्रभात संगीत के भाव ,भाषा, छंद, सूर एवं लय अद्वितीय और अतुलनीय है। संस्कृत बांग्ला, उर्दू , हिंदी, अंगिका ,मैथिली, मगही एवं अंग्रेजी भाषा में प्रस्तुत प्रभात संगीत मानव मन में ईश्वर प्रेम के प्रकाश फैलाने का काम करता है। संगीत साधना में तल्लीन साधक को एक बार प्रभात संगीत रूपी अमृत का स्पर्श पाकर अपनी साधना को सफल करना चाहिए।
इस पृथ्वी पर उपस्थित मनुष्य के मन में ईश्वर के लिए उठने वाले हर प्रकार के भाव को सुंदर भाषा और सूर में लयबद्ध कर प्रभात संगीत के रूप में प्रस्तुत कर दिया।
उन्होंने कहा कि कोई भी मनुष्य जब पूर्ण भाव से प्रभात संगीत के साथ खड़ा हो जाता है, तो रेगिस्तान भी हरा हो जाता है।
संगीत तथा भक्ति संगीत दोनों को ही रहस्यवाद से प्रेरणा मिलती रहती है। जितनी भी सूक्ष्म तथा दैवी अभिव्यक्तियां हैं, वह संगीत के माध्यम से ही अभिव्यक्त हो सकती है। मनुष्य जीवन की यात्रा विशेषकर अध्यात्मिक पगडंडियां प्रभात संगीत के सूर से सुगंधित हो उठता है। **आजकल प्रभात संगीत एक नये घराने के रूप में लोकप्रिय हो रहा* है