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BIHAR : आरिफ मोहम्मद खान ने राजभवन में ली शपथ, 26 साल बाद कोई मुस्लिम बना राज्यपाल

पटना: केरल के पूर्व राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने बिहार के 42वें राज्यपाल के रूप में आज शपथ ले ली है. पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश कृष्णन विनोद चंद्रन ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई. शपथ ग्रहण समारोह में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, दोनों उप मुख्यमंत्री और अन्य मंत्री भी उपस्थित थे. इसके साथ ही बिहार को 26 साल बाद मुस्लिम राज्यपाल मिला है. इससे पहले, एआर किदवई ने 14 अगस्त 1993 से लेकर 26 अप्रैल 1998 तक बिहार के राज्यपाल के रूप में कार्य किया था.

राज्यपाल बनने के बाद आरिफ मोहम्मद खान ने मीडिया से बातचीत करते हुए बिहार के लोगों की तारीफ की. उन्होंने कहा कि बिहार एक बहुत ही ऊर्जावान राज्य है और यहां की जनता में अपार प्रतिभा है. उनका मानना है कि बिहार की भूमिका देश के विकास में महत्वपूर्ण है, और राज्य के विकास के लिए वह हर संभव प्रयास करेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि अभी शपथ ली है, लेकिन आने वाले समय में राज्य की समृद्धि और विकास के लिए वे जितना कर सकते हैं, करेंगे.

आरिफ मोहम्मद खान का यह बयान बिहार की उम्मीदों और उनकी कार्यशैली के प्रति सकारात्मक संकेत दे रहा है. उन्होंने बिहार की विकास यात्रा को लेकर अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है और राज्य के लिए काम करने का वादा किया है.

राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान से नए साल के अवसर पर आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव से राबड़ी आवास पर मुलाकात करने को लेकर सवाल किया गया. इस पर उन्होंने कहा कि जेपी आंदोलन के दौरान उनके कई पुराने साथी रहे हैं, जिनसे वे मिलते रहते हैं, और लालू यादव भी उसी कड़ी का हिस्सा हैं. आरिफ मोहम्मद खान केरल के राज्यपाल रह चुके हैं और विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े रहे हैं जिसमें जनता पार्टी, लोकदल, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी शामिल हैं. वे नीतीश कुमार के साथ केंद्रीय कैबिनेट में मंत्री भी रहे हैं.

आरिफ मोहम्मद खान की शपथ के बाद, बिहार में राजनीतिक गतिविधियों के बीच यह सवाल भी उठ रहा है कि उनकी नियुक्ति राज्य की सियासत में कैसे बदलाव ला सकती है. बिहार के अगले विधानसभा चुनावों में इस नियुक्ति का क्या प्रभाव पड़ेगा, यह देखने लायक होगा. आरिफ मोहम्मद खान का बिहार के राज्यपाल के रूप में चयन न केवल एक ऐतिहासिक घटना है, बल्कि यह राज्य की राजनीति में एक नई दिशा की ओर इशारा भी कर सकता है.

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