New Delhi.खनन उद्योग का मानना है कि खनिज रॉयल्टी मामले पर आए सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले से भारतीय खनन उद्योग को बड़ा झटका लगेगा. रॉयल्टी की बकाया राशि 1.5 लाख करोड़ रुपये से दो लाख करोड़ रुपये तक होने का अनुमान जताया गया है. उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को अपने फैसले में राज्यों को खनिज अधिकारों और खनिज-युक्त भूमि पर कर लगाने के अधिकार को बरकरार रखा और उन्हें एक अप्रैल, 2005 से रॉयल्टी वसूल करने की अनुमति दे दी.
खान मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस फैसले का खनन, इस्पात, बिजली और कोयला कंपनियों पर बहुत बड़ा वित्तीय असर देखने को मिलेगा. अधिकारी ने कहा, ‘इस फैसले की वजह से खनन, बिजली और इस्पात क्षेत्रों में काम करने वाली कंपनियों के निवेश पर भी असर पड़ेगा.
खनन कार्यों से जुड़ी कंपनियों के संगठन फेडरेशन ऑफ इंडियन मिनरल इंडस्ट्रीज (फिमी) ने कहा कि भारतीय खनन क्षेत्र पहले से ही दुनिया में सबसे अधिक कराधान की समस्या का सामना कर रहा है. इसमें 25 जुलाई, 2024 के उच्चतम न्यायालय के फैसले ने राज्यों को खनन गतिविधियों पर विभिन्न कर और शुल्क लगाने के लिए बेलगाम अधिकार दे दिए.
फिमी के अतिरिक्त महासचिव बी के भाटिया ने कहा, ‘‘इसके बीच बुधवार को आया नया आदेश भारतीय खनन उद्योग को और झटका देगा क्योंकि रॉयल्टी की बकाया राशि 1.5 लाख करोड़ रुपये से लेकर दो लाख करोड़ रुपये तक हो सकती है. इस फैसले से ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों की खदानें सबसे अधिक प्रभावित होंगी. शीर्ष अदालत ने 25 जुलाई को आठःएक के बहुमत से दिए अपने पिछले फैसले में कहा था कि राज्यों के पास खनिज अधिकारों पर कर लगाने की विधायी शक्ति है. उसने 1989 के उस फैसले को खारिज कर दिया था, जिसमें खनिजों और खनिज युक्त भूमि पर रॉयल्टी लगाने का अधिकार सिर्फ केंद्र के पास होने की बात कही गई थी.
हालांकि, उस फैसले को आगामी प्रभाव से लागू करने की दलील केंद्र सरकार की तरफ से दी गई थी लेकिन बुधवार को मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने उस दलील को नकार दिया. नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि राज्यों को खनिज रॉयल्टी वसूलने का अधिकार एक अप्रैल, 2005 से दिया जाता है। हालांकि, बकाया राशि के भुगतान पर कुछ शर्तें भी तय की गई हैं.
भाटिया ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के नवीनतम निर्णय का न केवल खनन उद्योग पर बल्कि संपूर्ण मूल्य शृंखला पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा तथा इससे मूल्य शृंखला के सभी अंतिम उत्पादों की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि होगी. भाटिया ने कहा, ‘इस मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए तथा खनन क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने के लिए हमें लगता है कि केंद्र सरकार को तत्काल जरूरी विधायी कदम उठाने चाहिए.’
अंतरराष्ट्रीय कॉपर एसोसिएशन इंडिया के प्रबंध निदेशक मयूर करमरकर ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत से आने वाले ये बदलाव खनिज उद्योग के कारोबारी मॉडल को प्रभावित करते हैं. उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि केंद्र और खनन कंपनियों द्वारा बकाया राशि का भुगतान खनिज समृद्ध राज्यों को अगले 12 वर्षों में चरणबद्ध तरीके से किया जा सकता है. हालांकि, पीठ ने राज्यों को बकाया राशि के भुगतान पर किसी भी प्रकार का जुर्माना नहीं लगाने का निर्देश दिया.