झारखंड जनजातीय महोत्सव 2022 के अवसर पर जनजातीय शोध संस्थान मोरहाबादी में सेमिनार आयोजित,
पूरे देश से आए ख्यातिप्राप्त विशेषज्ञों ने लिया हिस्सा
रांची, किवंदती किताबों की कहानियां का अहम हिस्सा बन जाती हैं, क्योंकि किवंदती, कथाएं झुर्रियों से झांकती जुबां से आती हैं, जिन्होंने पल-पल प्रकृति में खुद को महसूस किया है और प्रकृति को ही अपना इष्ट माना है। मौका विश्व आदिवासी दिवस का था और मोरहाबादी मैदान में जहां सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा था, वहीं जनजातीय शोध संस्थान के सभागार में जनजातीय भाषाओं, संस्कृति और परंपराओं के विशेषज्ञों ने जनजातीय साहित्य, इतिहास, जनजातीय दर्शन एवं मनुष्य जाति के विकास में जनजाति के महत्व के बारे में बताया। विभिन्न राज्यों एवं विभिन्न जिलों से आये स्कॉलरों ने मनुष्य जाति के विकास में जनजाति के महत्व को बताया।
*ट्राइबल लिट्रेचर सेमिनार*
कार्यक्रम में जनजातीय परंपराओं के जानकार विभिन्न मंचों से अलग-अलग विषयों पर अपना व्याख्यान दे रहे थे। जनजातीय समुदाय का कैसे पहाड़ों, नदियों और जंगलों से अटूट रिश्ता रहा है, इसे लेकर साहित्य के अलग-अलग पहलुओं के साथ मंच से अपनी बातों को रखा। इस अवसर पर प्रयागराज से प्रो. जनारदन गोण्ड, कविता करमाकर (असम) , संतोष कुमार सोनकर, बिनोद कुमार (कल्याण, मुम्बई) , दिनकर कुमार (गुवाहाटी) , अरूण कुमार उरॉव (जेएऩयू, नई दिल्ली) , हेमंत दलपती (ओडिशा) , सानता नायक (कर्नाटक) , रूद्र चरण मांझी (बिहार) , डॉ. देवमेत मिंझ (छत्तीसगढ़) , कुसुम माधुरी टोप्पो, महादेव टोप्पो और प्रो. पार्वती तिर्की (राँची) आदि साहित्य के विद्वानों ने जनजातीय साहित्य के बारे में अपने विचार को साझा किया।
*ट्राइबल एन्थ्रोपोलॉजी पर सेमिनार*
ट्राइबल एन्थ्रोपोलॉजी पर आयोजित सेमिनार में मनुष्य जाति के विकास में जनजाति के महत्व को बताया गया। वक्ताओं ने कहा कि हम अपने लिए जनजाति समाज का अध्ययन करते हैं, जबकि यह उन जनजातियों के विकास के लिए होना चाहिए। यह शब्द जनजाति भी उन्हें औरों का दिया है। क्या वे खुद को जनजाति कहलाना पसंद करते हैं भी या नहीं। पहले पूरे गांव की जमीन हुआ करती थी। आज जमीन का प्राइवेटाइजेशन हो गया है। वक्ताओं ने बताया कि जनजाति आंदोलनों को फिर से पढ़ने की आवश्यकता है। लोग उसके बारे में जान नहीं पा रहे। उन्होंने जनजाति समूह द्वारा निर्मित चीजों को जीआई टैग से जोड़ने की बात कही, ताकि उनकी सामग्री का उन्हें उचित मूल्य मिल सके।
सेमिनार में Prof. Subhadra Channa, Prof. HC Bahera, Mr. Gyatso Lepcha Dr. Kanato G.Chophy (online) , Dr. Avitoli G (Online), Dr. Meenakshi Munda, Dr. Achana Mungeleng ने विभिन्न राज्य एवं विभिन्न जिलों से आये स्कॉलरों ने श्रोताओं को मनुष्य जाति के विकास में जनजाति के महत्व को बताया।
*ट्राइबल हिस्ट्री पर सेमिनार*
झारखंड जनजातीय महोत्सव 2022 के अवसर पर जनजातीय शोध संस्थान मोरहाबादी में ट्राइबल हिस्ट्री पर सेमिनार का आयोजन किया गया। इसमें जाने-माने वक्ताओं ने भाग लिया और ट्राइबल हिस्ट्री के बारे में जानकारी दी। ट्राइबल हिस्ट्री सेमिनार में प्रोफ़ेसर विनिता दामोदरन ने आदिवासियों का ग्लोबल इन्वायरमेंट में योगदान के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि आदिवासी प्रकृति पूजक होते हैं। जल ,जंगल , ज़मीन की सुरक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। प्रोफ़ेसर संगीता दास गुप्ता ने रीराइटिंग इंडिजेनस हिस्ट्री के बारे में बताया। वहीं यूएस से डा० राहुल रंजन ने बिरसा मुंडा की जीवनी और झारखंड के परिप्रेक्ष्य में उनके योगदान के बारे में ऑनलाइन माध्यम से बताया।
झारखंड जनजातीय महोत्सव 2022 के अवसर पर जनजातीय शोध संस्थान मोरहाबादी में आयोजित ट्राइबल हिस्ट्री सेमिनार में कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
*ट्राइबल फिलॉसफी पर सेमिनार*
जनजातीय शोध संस्थान मोरहाबादी में ट्राइबल फिलॉसफी पर सेमिनार का भी आयोजन किया गया। इसमें डॉ. गोमती बोदरा ने जनजातीय दर्शन पर प्रकाश डाला । उन्होंने कहा कि जनजातीय दर्शन के अध्ययन से ही जनजातियों के सामजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों को भलिभांति समझा जा सकता है। इस अवसर पर डॉ. आइसा गौतम, डॉ. संतोष किंडो, प्रो. मृणाल मिरी एवं प्रो. सुजाता मिरी ने भी अपने विचार साझा किए।