

प्रशासक को पत्र सौंप चांडिल के विस्थापितों के दर्द पर विधायक सविता महतो ने किया मरहम लगाने का प्रयास।
विस्थापितों के लिए विस्थापित शब्द हमेशा विस्मय की स्थिति में रहा है। विरासत में मिला विस्थापित शब्द विस्थापितों की हक की लड़ाई हमेशा दो धारी तलवार की तरह रहा है।
विश्वास – अविश्वास के बीच विस्थापित हमेशा वर्षों से पिसाते आ रहे हैं। चाहे विस्थापित कहीं का भी हो l पूर्णरूपेण उन्हें अधिकार हक और मुआवजा प्राप्त नहीं हो पाया है। झारखंड राज्य के सरायकेला – खरसावां जिले के चांडिल अनुमंडल में चांडिल डैम से विस्थापित हुए वर्षों पहले, आज भी विस्थापन का दंश झेल रहे हैं। चांडिल डैम के विस्थापित राजनीतिक दलों के लिए मुद्दे बनकर रह गए हैं ।वर्षों से विस्थापितों की हक अधिकार मुआवजा के लिए पूर्व विधायक अरविंद सिंह उर्फ मलखान सिंह, पूर्व विधायक साधु चरण महतो विस्थापितों के मुद्दे की लड़ाई लड़ते-लड़ते समय-समय पर विधानसभा पहुंच गए। मगर विस्थापितों की समस्याएं जस की तस आज भी बरकरार है। वर्तमान सरकार की माननीय विधायक (ईचागढ़ )की सविता महतो द्वारा भी अब विस्थापितों कि हम दर्द बनकर मरहम लगाने की भरपूर प्रयास कर समस्याओं का समाधान करने की अथक प्रयास कर रही है। इसी कड़ी में माननीय विधायक सविता महतो द्वारा चांडिल के विस्थापितों के विभिन्न समस्याओं के 12 सूत्री मांगों को लेकर स्वर्णरेखा परियोजना के प्रशासक बृजमोहन कुमार को मांगपत्र सौंपते हुए 40 दशक से पीड़ित 116 गांव के विस्थापितों को समुचित लाभ दिलाने की दिशा में आगे बढ़ते हुए कारगर कदम उठाया गया है सरकार द्वारा बनाई गई पुनर्वास नीति विकास पुस्तिका अनुदान राशि की भुगतान मुआवजा राशि की भुगतान के साथ ही साथ बिचौलिए पर लगाम लगाते हुए सख्त कार्रवाई करने की मांग की गई है। एक बार पुनः विस्थापितों की उम्मीद वर्तमान विधायक सविता महतो मौतो की उम्मीदों पर और आश्वासनों पर टिकी हुई है। देखना यह है कि कोशिश बरकरार रहती है या यूं ही टूट कर विस्थापितों की उम्मीदें चकनाचूर हो जाती है ।क्योंकि पूर्व के झारखंड सरकार के मंत्री श्री रामचंद्र सहित द्वारा भी विस्थापितों के हमदर्द बनकर मरहम लगाने का प्रयास किया गया मगर प्रयास प्रयास से ही रह गया और विस्थापितों का दर्द ज्यों का त्यों बरकरार की बरकरार ही है,लेकिन वर्तमान सरकार की इचागढ़ की विधायक सविता महतो से एक बार पुनः विस्थापितों की उम्मीद आस बंधी है। देखना अब यह है कि आशा और उम्मीद विस्थापितों का पूरा होता है ,या यूं ही आशाएं टूट जाएंगी और उम्मीदें ,उम्मीद बनकर रह जाएगी।
ए के मिश्र

