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Supreme Court: झारखंड, बंगाल समेत 17 राज्यों की जेल मैनुअल में जातिगत भेदभाव, सुप्रीम कोर्ट बोला, जेलों में जाति के आधार पर भेदभाव बर्दाश्त नहीं

New Delhi.सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जातिगत भेदभाव बढ़ाने वाले नियमों को जेल मैनुअल से हटाने का आदेश दिया. सीजेआइ डीवाइ चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन तीन जजों की पीठ ने साफ कर दिया कि जेलों में जाति के आधार पर किये जाने वाले भेदभाव को बर्दाश्त नहीं किया जायेगा. कोर्ट ने कहा कि जेल में रसोई और सफाई के काम को जाति के आधार पर बांटना गलत है. शीर्ष अदालत ने साफ कहा कि सफाई का काम सिर्फ निचली जाति के कैदियों को देना और खाना बनाने का काम ऊंची जाति वालों को देना आर्टिकल-15 का उल्लंघन है. इसके साथ ही कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को तीन महीने में जेल मैनुअल में बदलाव करने का निर्देश दिया.

कोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से भी कहा कि वह इस फैसले की कॉपी तीन सप्ताह में सभी राज्यों को भेजे और केंद्रीय गृह मंत्रालय एक मॉडल जेल मैनुअल भी बनाये, जिसमें जातिगत भेदभाव वाला कोई प्रावधान न हो. इस मॉडल मैनुअल के हिसाब से राज्य अपने यहां की जेल नियमावली तय करें.
सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार सुकन्या शांता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर यह मसला उठाया था. उन्होंने झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश समेत 11 राज्यों का उदाहरण देकर बताया था कि वहां कैदियों को जातियों के हिसाब से काम दिया जाता है. उनके रहने की व्यवस्था भी जाति के मुताबिक होती है. कई राज्यों में जेल नियमावली में ही भेदभाव भरी बातें लिखी हैं.

रसोई का काम उच्च जाति के कैदियों को दिया जाता है. सफाई का काम निम्न जाति के कैदियों को देते हैं. कुछ जातियों को आदतन अपराधी भी लिखा गया है. पीठ ने कहा कि संविधान सबको बराबरी का दर्जा देता है. अनुच्छेद-17 में छुआछूत पर रोक लगायी गयी है. अनुच्छेद-21 गरिमा से जीने का अधिकार देता है. यह सभी प्रावधान जेलों में भी लागू हैं. कैदियों के रहने की व्यवस्था या जेल में उन्हें दिये जाने वाले काम में जातीय पहचान को कोई महत्व नहीं मिलना चाहिए. जेल में कैदी की जाति दर्ज करने का कॉलम नहीं होना चाहिए

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