New Delhi. न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने सोमवार को भारत के 51वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ली. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में न्यायमूर्ति खन्ना को पद की शपथ दिलाई. न्यायमूर्ति खन्ना ने ईश्वर के नाम पर, अंग्रेजी में शपथ ली. 14 मई, 1960 को जन्मे न्यायमूर्ति खन्ना छह महीने से कुछ अधिक समय तक भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य करेंगे और 65 वर्ष की आयु पूरी होने पर 13 मई, 2025 को सेवानिवृत्त हो जाएंगे.
उन्होंने न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ का स्थान लिया है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ 65 वर्ष की आयु पूरी होने पर रविवार को सेवानिवृत्त हो गए. शपथ ग्रहण समारोह में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के अलावा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और पूर्व प्रधान न्यायाधीश जे. एस. खेहर मौजूद थे.
न्यायमूर्ति खन्ना जनवरी 2019 से उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्यरत हैं. वह ईवीएम की शुचिता को बनाए रखने, चुनावी बांड योजना को खत्म करने, अनुच्छेद 370 को हटाने और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने जैसे कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं. दिल्ली स्थित एक प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक रखने वाले न्यायमूर्ति खन्ना, दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति देव राज खन्ना के पुत्र और शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश एच. आर. खन्ना के भतीजे हैं.
सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना के उल्लेखनीय निर्णयों में से एक है चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के उपयोग को बरकरार रखना, जिसमें कहा गया है कि ये उपकरण सुरक्षित हैं और इनसे बूथ कब्जाने तथा फर्जी मतदान की समस्या समाप्त हो जाती है. न्यायमूर्ति खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने 26 अप्रैल को ईवीएम में हेरफेर के संदेह को ‘‘निराधार’’ करार दिया था तथा पुरानी मतपत्र प्रणाली पर वापस लौटने की मांग को खारिज कर दिया था. वह उन पांच न्यायाधीशों की पीठ का भी हिस्सा थे जिसने राजनीतिक दलों को वित्तपोषित करने वाली चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक घोषित किया था.
न्यायमूर्ति खन्ना उन पांच न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा थे, जिसने तत्कालीन जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के 2019 के फैसले को बरकरार रखा था. न्यायमूर्ति खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ही थी, जिसने पहली बार तत्कालीन मुख्यमंत्री केजरीवाल को आबकारी नीति घोटाला मामलों में लोकसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए एक जून तक अंतरिम जमानत दी थी.
न्यायमूर्ति खन्ना का जन्म 14 मई 1960 को हुआ था और उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के ‘कैम्पस लॉ सेंटर’ से कानून की पढ़ाई की थी. न्यायमूर्ति खन्ना राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नाल्सा) के कार्यकारी अध्यक्ष थे. उन्होंने 1983 में दिल्ली बार काउंसिल में अधिवक्ता के रूप में नामांकन कराया और शुरुआत में यहां तीस हजारी परिसर में जिला अदालतों में तथा बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय में वकालत की.
आयकर विभाग के वरिष्ठ स्थायी वकील के रूप में उनका कार्यकाल लंबा रहा। 2004 में उन्हें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के लिए स्थायी वकील (सिविल) के रूप में नियुक्त किया गया. न्यायमूर्ति खन्ना ने दिल्ली उच्च न्यायालय में अतिरिक्त सरकारी अभियोजक और न्यायमित्र के रूप में भी कई आपराधिक मामलों में बहस की थी.