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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट चुनाव के दौरान मुफ्त उपहार देने के वादों के खिलाफ अर्जी पर सुनवाई पर करेगा विचार

New Delhi. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहार देने के वादे से जुड़ा मुद्दा ‘बहुत अहम’ है और इस प्रवृत्ति के खिलाफ दाखिल याचिकाओं को अपनी कार्यसूची से नहीं हटाएगा. प्रधान न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने वकील और जनहित याचिका दाखिल करने वाले अश्विनी उपाध्याय से कहा कि अर्जी पहले ही आज की कार्य सूची में है और उनपर सुनवाई की जरूरत है.

चूंकि, पीठ आंशिक रूप से सुने जा चुके एक अन्य मामले पर सुनवाई कर रही थी, इसलिए इस बात की काफी कम संभावना है कि मुफ्त उपहार देने के वादे के खिलाफ दाखिल जनहित याचिकाओं पर दिन के दौरान सुनवाई हो. इसके मद्देनजर वकील ने आग्रह किया कि इन याचिकाओं को कार्यसूची में रखा जाए, ताकि उन पर बाद की तारीख में सुनवाई की जा सके.

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘इसे (कार्य सूची से) हटाया नहीं जाएगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘यह बहुत अहम मुद्दा है. इन याचिकाओं का उल्लेख इस साल 20 मार्च को तत्काल सुनवाई के लिए किया गया था. इस याचिका में उपाध्याय ने निर्वाचन आयोग को निर्देश देने का अनुरोध किया है कि वह अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए ऐसे दलों के चुनाव चिह्न को जब्त करे और पंजीकरण रद्द करे.

याचिका में कहा गया कि राजनीतिक लाभ लेने के लिए लोकलुभावन कदमों पर रोक लगाई जानी चाहिए, क्योंकि यह संविधान का उल्लंघन करते हैं एवं निर्वाचन आयोग को उचित कदम उठाना चाहिए. याचिका में अदालत से यह घोषित करने का भी आग्रह किया कि चुनाव से पहले सरकारी खजाने से धन को खर्च कर अतार्किक मुफ्त उपहारों का वादा मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित करता है, समान अवसर को बाधित करता है और चुनाव प्रक्रिया की शुचिता को भंग करता है.

याचिका में कहा गया है,‘‘याचिकाकर्ता की दलील है कि चुनाव को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त की सौगात की पेशकश कर मतदाताओं को प्रभावित करने की हालिया प्रवृत्ति न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों के अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा है, बल्कि संविधान की भावना को भी चोट पहुंचाती है. याचिका में कहा गया है, ‘‘यह अनैतिक प्रथा सत्ता में बने रहने के लिये सरकारी खजाने की कीमत पर मतदाताओं को रिश्वत देने के समान है और लोकतांत्रिक सिद्धांतों और परिपाटियों को संरक्षित रखने के लिये इससे बचा जाना चाहिये.

देश में इस समय आठ राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त, 56 राज्य स्तर पर मान्यता प्राप्त दल हैं. देश में इस समय करीब 2800 पंजीकृत गैर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल हैं.

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