New Delhi. उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई को एक जनहित याचिका में पक्षकार बनाए जाने और एक सेवा विवाद से संबंधित याचिका को खारिज करने संबंधी मामले में उनके खिलाफ आंतरिक जांच की मांग किए जाने पर कड़ी नाराजगी जताई. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने पुणे में रहने वाले वादी से कहा, ‘‘आप किसी न्यायाधीश को प्रतिवादी बनाकर जनहित याचिका कैसे दायर कर सकते हैं? कुछ तो गरिमा होनी चाहिए. आप बस यह नहीं कह सकते कि मैं एक न्यायाधीश के खिलाफ आंतरिक जांच चाहता हूं.न्यायमूर्ति रंजन गोगोई उच्चतम नयायालय के पूर्व न्यायाधीश थे.
पीठ ने कहा, ‘‘वह भारत के प्रधान न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुए. आप यह नहीं कह सकते कि मैं किसी न्यायाधीश के खिलाफ आंतरिक जांच चाहता हूं क्योंकि आप पीठ के समक्ष सफल नहीं हुए. क्षमा करें, हम इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते. याचिकाकर्ता ने श्रम कानूनों के तहत उसकी सेवा समाप्त किए जाने से संबंधित उसकी याचिका को न्यायमूर्ति गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ द्वारा खारिज किए जाने के बाद एक जनहित याचिका दायर की थी. न्यायमूर्ति गोगोई सेवानिवृत्त हो चुके हैं.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘यह ‘या-या’ क्या है? ये कोई कॉफी शॉप नहीं है, मुझे इस ‘या-या’ से बहुत एलर्जी है शुरुआत में ही प्रधान न्यायाधीश ने उस समय नाराजगी जताई जब वादी ने पीठ के कुछ सवालों के जवाब में ‘यस’ के बजाय ‘या-या’ कहा. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘यह ‘या-या’ क्या है? ये कोई कॉफी शॉप नहीं है. मुझे इस ‘या-या’ से बहुत एलर्जी है। इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती.वादी ने कहा कि यह ‘‘अवैध रूप से सेवा समाप्त किए जाने’’ का मामला है.
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘याचिका और पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद आप सेवा मामले में जनहित याचिका कैसे दायर कर सकते हैं, आपको सुधारात्मक याचिका दायर करनी चाहिए थी. उन्होंने वादी को कानूनी मुद्दों और प्रक्रियात्मक आपत्तियों को समझाने के लिए मराठी भाषा में भी बात की और उससे शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री के समक्ष यह बयान देने के लिए कहा कि वह पूर्व प्रधान न्यायाधीश का नाम पक्षकारों की सूची से हटा देगा.
प्रधान न्यायाधीश ने कहा,….क्या आप न्यायमूर्ति गोगोई का नाम हटाएंगे? क्या आप यह लिखित में देंगे…आप पहले इसे हटाएं और फिर हम देखेंगे. न्यायमूर्ति गोगोई वर्तमान में राज्यसभा सदस्य हैं। वह न्यायपालिका में शीर्ष पद तक पहुंचने वाले पूर्वोत्तर के पहले व्यक्ति हैं और उन्हें दशकों पुराने राजनीतिक एवं धार्मिक रूप से संवेदनशील अयोध्या भूमि विवाद मुद्दे को हल करने का श्रेय दिया जाता है. वह 17 नवंबर, 2019 को प्रधान न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुए थे.