पत्रकारों पर पुलिसिया अत्याचार और दादागिरी से चिंतित चौथे स्तंभ,बुद्धिजीवी वर्ग एवं आम जनता।
गुंडे की तरह पुलिस ने पत्रकार को पीटा, वरीय अधिकारियों से मिलकर पत्रकारों ने की कार्रवाई की मांग ।पत्रकारों मे सुरक्षा कानून को लेकर आक्रोश ।
आए दिन पत्रकारों के साथ कोई न कोई अनहोनी घटनाएं घट रही है, चाहे वह माफिया द्वारा हो ,चाहे प्रशासन द्वारा हो l आज हर जगह पत्रकार अपनी ही सुरक्षा को लेकर असमंजस की स्थिति में रहते हैं। जिन कंधे पर पत्रकारों की सुरक्षा की जिम्मेवारी है वही रक्षक आज पत्रकारों का भक्षक बन बैठा है। पत्रकारो पर गरीब, नीरीह, बेबस, लोगों का भरोसा और उम्मीद रहता है, आम जनता की उम्मीदें पत्रकारों पर टिकी रहती है । वही पत्रकार अपनी सुरक्षा की परवाह किए बगैर उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए भरपूर अथक प्रयास कर उनकी उम्मीदों पर खरा उतरते हैं और न्याय देने दिलाने की दिशा में हमेशा तत्पर रहते हैं।आज वही पत्रकारों पर दुमका जिले के शिकारीपाड़ा थाना के एएसआई लक्ष्मण उराव द्वारा पत्रकार अफजल के साथ मारपीट दिनदहाड़े थाना में की। मामला यह है कि थाने में किसी निर्दोष बैठाया गया था ।जिसको लेकर पत्रकार द्वारा सवाल पूछा गया ।जिसके बाद थाने के एएसआई लक्ष्मण उरांव ने अपनी आपा खो दी और पत्रकारों के साथ मारपीट शुरू कर दी। उपस्थित पत्रकारों ने
बीच-बचाव करते हुए अन्य पत्रकारों एवं वरीय अधिकारियों की जानकारी दी ।
पत्रकारों को सूचना मिलते ही पत्रकारों ने पुलिस अधिकारियों से संपर्क किया और एएसआई द्वारा किए गए गुंडागर्दी की बात विस्तार से बताया गया हैं । पत्रकारों के विरुद्ध पर उल्टे अधिकारियों द्वारा ही काउंटर केस करने की धमकी दिए जाने लगा। अब सवाल यह उठता है कि जिसके कंधे पर पत्रकारों की सुरक्षा की जिम्मेवारी है वहीं करवाई के बदले उल्टा पत्रकारों पर ही काउंटर केश करने की बातें कहते हैं ।आखिर कब तक पत्रकारों के साथ इस तरह से अत्याचार होता रहेगा ।आज पत्रकार, बुद्धिजीवी और आम जनता इस प्रश्न को लेकर चिंतित नजर आ रहे है ।अपनी सुरक्षा के लिए आज पत्रकार काले बिल्ले लगाकर राज्य में कार्य कर रहे हैं ,यह राज्य सरकार के लिए चिंतनीय यक्ष प्रश्न बनते जा रहा है कि आखिर पत्रकारों की सुरक्षा कौन देगा ? पत्रकारों ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और हो रहे अत्याचार के खिलाफ एकजुट होकर आवाज बुलंद करने के लिए शीघ्र ही एक बैठक कर आगे की रणनीति तैयार करेंगे ।
पत्रकार सुरक्षा कानून,आर्थिक पैकेज और बीमा के जगह पत्रकारों को मिल रहें हैं ,पिटाई झूठे केस और धमकियाँ।
पत्रकारों में इस बात को लेकर काफी आक्रोश है कि राज्य बनने के बाद कई बार पत्रकारों पर फर्जी मामले दर्ज हुए ,धमकियाँ मिली। बल्कि कई बार पत्रकारों की पिटाई भी हुई । पत्रकारों पर अत्याचार और दमन पर सभी पत्रकारों को एकजुट होकर , पत्रकार सुरक्षा कानून के लिए आंदोलित होकर अपने हक और अधिकार और सुरक्षा के लिए शीघ्र ही सड़कों पर उतर कर आवाज बुलंद करने की जरूरत है । आम जनता और बुद्धिजीवी वर्ग भी पत्रकारों के संघर्ष और आंदोलन में कंधे से कंधा मिलाकर साथ देंगी ।क्यों कि आम जनता की आवाज बनकर पत्रकार उनकी सुरक्षा के लिए अपनी सुरक्षा की परवाह किए बगैर जनता की आवाज बनकर जनता की सुरक्षा के लिए आवाज बुलंद करते हैं । जनता और बुद्धिजीवी वर्ग भी पत्रकारों की सुरक्षा के लिए पत्रकारों के आंदोलन संघर्ष और पत्रकार सुरक्षा कानून के लिए हर संघर्ष में साथ देने का मन बना लिया है। आम जनता का मानना है,
पत्रकार सुरक्षित आम जनता सुरक्षित
पत्रकार असुरक्षित, जनता असुरक्षित। अब पत्रकारों को पत्रकार सुरक्षा कानून के दिशा में संघर्ष करते हुए आगे बढ़े हुए सार्थक पहल करने की जरूरत है।
ए के मिश्र