- सुप्रीम कोर्ट ने 25 जुलाई को एक फैसले में कहा था कि राज्यों के पास खदानों और खनिज वाली भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार है
New Delhi. सुप्रीम कोर्ट ने 1989 से खनिजों और खनिज युक्त भूमि पर केंद्र द्वारा लगायी गई रॉयल्टी राज्यों को लौटाने के मुद्दे पर अपना फैसला बुधवार को सुरक्षित रख लिया. प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने 25 जुलाई को 8:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि राज्यों के पास खदानों और खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने का विधायी अधिकार है और खनिजों पर दी जाने वाली रॉयल्टी कोई कर नहीं है.शीर्ष अदालत के इस फैसले से खनिज संपन्न राज्यों के राजस्व में भारी वृद्धि होगी। लेकिन इससे फैसले के क्रियान्वयन के संबंध में एक और विवाद खड़ा हो गया.
सीजेआई की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने केंद्र, राज्यों तथा खनन कंपनियों की दलीलों को सुनने के बाद इस विषय पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया कि क्या 25 जुलाई के उसके फैसले को आगे लागू किया जाएगा या पूर्वव्यापी प्रभाव से. पीठ में न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति उज्जल भूइयां, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल रहे.
केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 25 जुलाई के फैसले को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू करने से आम आदमी पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा क्योंकि कंपनियां उन पर वित्तीय बोझ डालेंगी. केंद्र ने न्यायालय में उस याचिका का विरोध किया, जिसमें खनिज संपन्न राज्यों ने 1989 से खनिजों और खनिज युक्त भूमि पर उसके द्वारा लगायी रॉयल्टी वापस करने का अनुरोध किया गया है. रॉयल्टी वह भुगतान है जो उपयोगकर्ता पक्ष बौद्धिक संपदा या अचल संपत्ति परिसंपत्ति के मालिक को अदा करता है.
केंद्र ने कहा कि उसे राज्यों को पूर्वव्यापी प्रभाव से रॉयल्टी वापस करने के लिए कहने वाले किसी भी आदेश के बहुआयामी प्रभाव होंगे.
झारखंड खनिज विकास प्राधिकरण की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने अदालत से 25 जुलाई के फैसले को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू करने और रॉयल्टी को क्रमबद्ध तरीके से वापस करने का निर्देश देने का अनुरोध किया. विपक्षी दलों द्वारा शासित कुछ खनिज संपन्न राज्यों ने शीर्ष अदालत से इस फैसले को पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू करने का अनुरोध किया ताकि वे केंद्र से रॉयल्टी वापस मांग सकें.
बहरहाल, केंद्र ने ऐसे किसी आदेश का विरोध करते हुए कहा कि इसका ‘‘बहुआयामी’’ प्रभाव होगा. खनन से जुड़ी कंपनियों ने भी खनिज वाले राज्यों को रॉयल्टी वापस करने के मुद्दे पर केंद्र के दृष्टिकोण का समर्थन किया है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा शासित मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्य फैसले को आने वाले समय में लागू करवाना चाहते हैं. भाजपा शासित ओडिशा सरकार ने पीठ के कहने के बावजूद कोई स्पष्ट रुख नहीं लिया है और राज्य की ओर से पेश वकील ने बस इतना कहा है कि वे नहीं चाहते कि सरकारी खजाने पर बोझ पड़े.
बहुमत से दिया गया 200 पृष्ठों का 25 जुलाई का फैसला प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने खुद और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति उज्जल भूइयां, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने लिखा है बहरहाल, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने बहुमत के फैसले से असहमति जताई थी। उन्होंने कहा था कि यदि खनिज संसाधनों पर कर लगाने का अधिकार राज्यों को दे दिया गया तो इससे संघीय व्यवस्था चरमरा जाएगी क्योंकि वे आपस में प्रतिस्पर्धा करेंगे और खनिज अधिकार के उपयोग में समस्या आएगी