- झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और दक्षिण पश्चिम बंगाल का 21 हजार वर्ग किलोमीटर का इलाका हाथियों का आवास है
- देश के जंगली हाथियों की कुल संख्या का 11 प्रतिशत हाथी झारखंड में हैं
Jamshedpur. दलमा, सारंडा समेत कोल्हान के जंगल कभी हाथियों के लिए सुरक्षित इलाके माने जाते थे. लेकिन अब हाथियों के लिए डेथ जोन बनते जा रहे हैं. पांच साल के आंकड़ों पर गौर करें तो पता चलता है कि कोल्हान में विभिन्न करणों से 62 हाथियों की मौत हो चुकी है. सिर्फ इस साल 2024 में अब तक नौ हाथियों की मौत हो चुकी है. इसमें से सात हाथियों की मौत करंट लगने से हुई है. दो की अन्य कारणों से हुई है. कुछ दिन पूर्व दलमा से सटे चांडिल और चिलगू एरिया में दो हाथियों की मौत हुई थी. इस साल रेलवे ट्रैक पार करने के दौरान एक हाथी की मौत हुई थी. नवंबर 2023 में एक साथ सात हाथियों की मौत चाकुलिया और धालभूमगढ़ में हुई थी.
इसलिए बढ़ीं मुश्किलें…सड़क-रेल लाइन विस्तार और आबादी बढ़ी
सड़क और रेलवे लाइन का विस्तार हुआ. आबादी भी बढ़ी. लेकिन इन सारी गतिविधियों के दौरान हाथियों के कॉरिडोर का ध्यान नहीं रखा गया. नतीजा यह कि हाथी जब जंगल से बाहर निकलते हैं तो स्वाभाविक तौर पर उनका गुस्सा भड़क उठता है. उनके खाने के साधन जंगल में कम होते जा रहे हैं. जंगल भी सिकुड़ते जा रहे हैं.
21 हजार वर्ग किलोमीटर का इलाका हाथियों का आवास
वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूटीआई) ने 2017 में एक रिपोर्ट पेश की थी. इस रिपोर्ट में बताया गया था कि झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और दक्षिण पश्चिम बंगाल का 21 हजार वर्ग किलोमीटर का इलाका हाथियों का आवास है. आधिकारिक आंकड़े के मुताबिक देश के जंगली हाथियों की कुल संख्या का 11 प्रतिशत हाथी झारखंड में हैं. हालांकि चिंता की बात यह है कि यहां हाथियों की संख्या में लगातार कमी दर्ज हो रही है. राज्य में आखिरी बार 2017 में हाथियों की गिनती हुई थी और इनकी संख्या 555 बताई गई थी, जबकि इसके पांच साल पहले हुई गणना में इनकी संख्या 688 थी.