Ranchi.झारखंड हाइकोर्ट ने झारखंड में आदिवासियों के धर्मांतरण को रोकने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. एक्टिंग चीफ जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने केंद्र सरकार व राज्य सरकार की ओर से आदेश के बाद भी जवाब दाखिल नहीं करने पर कड़ी नाराजगी जतायी. खंडपीठ ने फटकार लगाते हुए मौखिक रूप से कहा : ऐसा प्रतीत होता है कि झारखंड में घुसपैठ के जरिये आदिवासियों के धर्मांतरण का खेल चल रहा है और दोनों सरकारें चुप हैं. खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार को जवाब दायर करने के लिए हमने कई अवसर दिये, लेकिन जवाब दाखिल नहीं हुआ. इस मुद्दे पर केंद्र सरकार भी उदासीन बनी हुई है तथा अपना जवाब दाखिल नहीं कर रही है.
लगता है कि केंद्र व राज्य सरकार मिल कर ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर जनता को दिग्भ्रमित कर रही हैं. यदि सरकार की ओर से जवाब दायर नहीं किया गया, तो कोर्ट जुर्माना भी लगा सकती है. खंडपीठ ने केंद्र सरकार व राज्य सरकार को शपथ पत्र दायर करने का निर्देश दिया. साथ ही खंडपीठ ने इस जनहित याचिका के साथ बांग्लादेशी घुसपैठियों के झारखंड में अवैध प्रवेश को रोकने को लेकर दायर जनहित याचिका को टैग करते हुए दोनों की सुनवाई एक साथ करने का निर्देश दिया. मामले का अगली सुनवाई के लिए खंडपीठ ने पांच सितंबर की तिथि निर्धारित की. इससे पूर्व राज्य सरकार की ओर से समय देने का आग्रह करते हुए बताया गया कि जिलों में धर्मांतरण को लेकर डाटा इकट्ठा किया गया है.
इसे शपथ पत्र के माध्यम से शीघ्र दायर कर दिया जायेगा. प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता रोहित रंजन सिन्हा ने पैरवी की. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी सोमा उरांव ने जनहित याचिका दायर कर झारखंड में हो रहे धर्मांतरण को रोकने की मांग की है. कहा गया कि राज्य में आदिवासियों का धर्मांतरण खुलेआम हो रहा है. आदिवासियों के धर्मांतरण की जांच के लिए सरकार द्वारा एक समिति का गठन किया जाना चाहिए. राज्य में चंगाई सभा के माध्यम से भोले-भाले आदिवासियों को लालच देकर अन्य दूसरे धर्म में लाया जा रहा है. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने केंद्र सरकार व राज्य सरकार से पूछा था कि झारखंड के किन-किन जिलों में आदिवासी का धर्मांतरण किया जा रहा है? अब तक कितने लोगों का धर्मांतरण हो चुका है तथा इसे रोकने के लिए केंद्र सरकार व राज्य सरकार द्वारा क्या-क्या कार्रवाई की जा रही है? शपथ पत्र के माध्यम से जवाब दायर करने का निर्देश दिया था.