झारखंड सरकार के कई विकास एजेंसियों के द्वारा धड़ल्ले से संविदा निकली जा रही है.निविदा शर्त के अनुरूप कई योजनाएं को मात्र 3 माह में पूरी की जानी है. ऐसे में सवाल उठता है कि एनजीटी की रोक के कारण बालू के अभाव में खुद को ब्लैकलिस्ट होने से बचने के लिए संवेदक किस प्रकार ससमय योजना पूरा करेंगे!
कुछ संवेदक दवे जुबान स्वीकार करते हैं कि सरकारी योजनाओं को पूरा करने के लिए भी गैर कानूनी ढंग से बालू का भंडारण एवं प्रयोग किया जा सकता है.
ज्ञात हो कि एनजीटी ने झारखंड में 10 जून 2024 से 15 अक्तूबर 2024 तक नदियों से बालू के उठाव पर रोक लगा रखी है. नदियों का इको सिस्टम बनाये रखने के लिए मॉनसून के दौरान हर साल इस अवधि तक बालू के उठाव पर रोक रहती है. यह रोक देश के अन्य राज्यों में भी है. कुछ राज्य इसका पालन भी कर रहे हैं, लेकिन झारखंड में इस आदेश को ताक पर रख दिया गया है.
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल(एनजीटी) के आदेश के वाबजूद बालू के उत्खनन पर रोक अवधि (10 जून 2024 से 15 अक्तूबर 2024) में सरकार के विभिन्न विकास कार्यों की एजेंसियों द्वारा सरकारी योजना की निविदा प्रकाशित किए जाने से झारखंड में धड़ल्ले से अवैध तरीके से बालू का उठाव हो रहा है. प्रशासन बालू की अवैध खनन एवं भंडारण पर करवाई की लाख दावा कर रही हैं पर विभिन्न टॉल टैक्स वसूले जाने वाले स्थलों एवं एक जिला से दूसरे जिला को जोड़ने वाले पुलों पर लगे सीसीटीवी कैमरा की जांच कराए तो यह स्पष्ट हो सकता है कि पुलिस प्रशासन के नाक के नीचे खुलेआम बालू की कालाबाजारी हो रही है अथवा नहीं.
सूत्र बताते हैं कि पूरे झारखंड में ट्रैक्टर, ट्रक और हाइवा से खुलेआम बालू ढोया जा रहा है. इसके बावजूद न तो प्रशासन इसे रोक रहा है न ही खान विभाग कोई कार्रवाई कर रहा है. नतीजतन, राजधानी रांची से लेकर राज्य के लगभग तमाम जिलों में अवैध बालू उठाव का खुला खेल जारी है.
हालत यह है कि उन जिलों में भी नदियों से बालू निकाला जा रहा है, जहां घाटों की निविदा तक नहीं हुई है. राज्य में 796 बालू घाट हैं, लेकिन केवल 27 घाटों की ही निविदा हो सकी है. अन्य घाटों के लिए निविदा प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हुई है.
कुमार मनीष,9852225588
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