भाजपा में जाने की तैयारी कर चुके पूर्व सीएम चंपई सोरेन के रूठने और मानने की कहानी आज की नहीं बल्कि दशकों पुरानी है। यह अलग बात है कि इस बार उन्हें मनाने की जहमत किसी ने नहीं उठाई और अकेले बीजेपी का रुख करना पड़ा।
जिलिंगगोडा से उन्हें राजनीति के मैदान में लाने वाले बैजनाथ सोरेन अब इस दुनिया में नहीं रहे, जिन्होंने कांग्रेसी हो कर भी शिबू सोरेन से उन्हें मिलाया था और कोल्हान की राजनीति में स्थापित किया।
चंपई के मजदूर आंदोलन की साख भी तीर कमान के निशान पर टिकी थी। जिस दौर में शिबू सोरेन से कृष्णा मार्डी ने अलग होकर झामुमो मार्डी गुट बनाया तब भी उसकी जड़ में चंपई ही थे।
इसके साथ स्व बाबूलाल मुर्मू से भी उनकी अदावत लंबे समय तक चलती रही। मुर्मू और सूरज मंडल ने झामुमो से अलग होकर झारखंड विकास दल की राजनीति की। चंपई के ठसक के आगे शिबू सोरेन अन्य नेताओं को दरकिनार करते गए लेकिन उन्होंने ने भी यह नहीं सोचा होगा उनका यह सिपहसलार एक दिन उनके पुत्र हेमंत सोरेन से ही रूठ जाएगा।
इस बीच झामुमो का झंडा बुलंद करते हुए चंपई ने अपनी एक खास मंडली बनाई थी, जिसमें उनके साथ शहीद सुनील महतो, विद्युतवरण महतो, रामदास सोरेन और मोहन कर्मकार भी थे।
पांच पांडव के नाम से विख्यात इस मंडली ने राज्य गठन के साथ कोल्हान में झामुमो का सितारा खूब बुलंद किया। तब दुलाल भुइयां और दिवंगत सुधीर महतो का अलग खेमा था। 2004 लोकसभा चुनाव से पहले भी सुनील महतो के टिकट के लिए चंपई सोरेन, शिबू सोरेन और स्व दुर्गा सोरेन से रूठे थे।
सुनील महतो को तो टिकट मिल गया और जीत भी गए और साल भर में चंपई,सुनील महतो से भी रूठ गए।
नक्सलियों ने सुनील महतो की हत्या कर दी और कुछ वर्ष बाद सुधीर महतो का भी निधन हो गया। कोल्हान में चंपई का एकछत्र हो गया लेकिन अब उनकी अदावत पूर्वी सिंहभूम जिलाध्यक्ष रामदास सोरेन से हो गई।
हालांकि इससे पहले चंपई और रामदास की गहरी छनती थी। इस बीच कई युवा और सक्रिय नेता पार्टी छोड़ अन्य दल में चलें गए अथवा राजनीत से ही किनारा कर लिया।
चंपई की ताजा अदावत निर्मल महतों के सहयोगी रहे कद्दावर कुड़मी नेता आस्तिक महतो से सदैव रही और पिछली बार तो उनकी जगह खुद झामुमो के टिकट से चुनाव लड़े और हार गए।
इस बार आस्तिक का टिकट तय था तो उन्होंने समीर महंती को लोस चुनाव लड़ा दिया और वो भी भाजपा प्रत्याशी से हार गए।तब से अंदेशा हो गया था कि चंपई संगठन को कम भाजपा को ज्यादा फायदा पहुंचाने में लगे थे।
यह तो भला हो सिंहभूम के विधायकों और जनता का जिन्होंने भारी विरोध के बाद भी जोबा मांझी की जीत सुनिश्चित कर दी। कोल्हान में झामुमो के सबसे बड़े नेता की इस पैंतरबाजी को सीएम हेमंत सोरेन भली भांति भांप चुके थे और उन्हें इस बार मनाने के बजाय यूं ही छोड़ दिया।
विमल अब्राह,9852225588