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वैश्विक भूख सूचकांक 2024 में 127 देशों में 105वें स्थान पर भारत, CM हेमंत ने मोदी सरकार पर कसा तंज, कहा, इस मुद्दे को भी साजिश बता मणिपुर की तरह भूल जाएंगे

Ranchi. वैश्विक भूख सूचकांक (जीएचआई) की 127 देशों की सूची में भारत को 105वें स्थान के साथ ‘गंभीर’ श्रेणी में रखा गया है. इस मामले पर सीएम हेमंत सोरेन ने एक्स पर मोदी सरकार को घेरा. उन्होंने कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार के पिछले 11 सालों में किए गए बाकी सब वादें भले जुमले/सफेद झूठ साबित हुए हो.पर इस मुद्दे पर उन्हें जरूर साफ़गोई के साथ कार्य करना चाहिए था – क्योंकि यह देश के भविष्य का मुद्दा है. पर अफ़सोस है की इस गंभीर मुद्दे पर भी वे हमेशा की तरह सिर्फ़ राजनीति और जुमलेबाज़ी में ही व्यस्त रहें है. और मुझे पूरी उम्मीद है की वे हमेशा की तरह इस रिपोर्ट को एक गहरी साज़िश बता – मणिपुर की तरह भूल जाएँगे.

दरअसल, अंतरराष्ट्रीय मानवीय एजेंसियां भूख के स्तर को मापने के लिए कुपोषण और बाल मृत्यु दर संकेतकों के आधार पर जीएचआई स्कोर प्रदान करती हैं, जिसके आधार पर यह सूची तैयार की जाती है. साल 2024 की रिपोर्ट इस सप्ताह आयरलैंड के मानवीय संगठन ‘कंसर्न वर्ल्डवाइड’ और जर्मन सहायता एजेंसी ‘वेल्थहंगरहिल्फ’ ने प्रकाशित की है, जिसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि भूख के मुद्दे से निपटने के उपायों में अधिक प्रगति नहीं होने से दुनिया के कई सबसे गरीब देशों में भूख का स्तर कई दशकों तक उच्च बना रहेगा.

भारत उन 42 देशों में शामिल है जिन्हें पाकिस्तान और अफगानिस्तान के साथ “गंभीर” श्रेणी में रखा गया है जबकि अन्य दक्षिण एशियाई पड़ोसी देश जैसे बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका बेहतर जीएचआई स्कोर के साथ “मध्यम” श्रेणी में हैं. सूचकांक प्रविष्टि में कहा गया है, “2024 के वैश्विक भूख सूचकांक में 27.3 के स्कोर के साथ भारत में भूख का स्तर गंभीर है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का जीएचआई स्कोर चार घटक संकेतकों के मूल्यों पर आधारित है: 13.7 प्रतिशत जनसंख्या कुपोषित है, पांच वर्ष से कम आयु के 35.5 प्रतिशत बच्चे अविकसित हैं, जिनमें से 18.7 प्रतिशत दुर्बल हैं, तथा 2.9 प्रतिशत बच्चे पैदाइश के पांच साल के अंदर मर जाते हैं.

रिपोर्ट में विश्लेषण के आधार पर कहा गया है कि 2030 तक भूख मुक्त दुनिया बनाने के संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य को प्राप्त करने की संभावना बहुत कम है. रिपोर्ट के अनुसार, “पर्याप्त भोजन के अधिकार के महत्व पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बार-बार जोर देने के बावजूद, स्थापित मानकों और इस वास्तविकता के बीच एक चिंताजनक असमानता बनी हुई है. दुनिया के कई हिस्सों में भोजन के अधिकार की खुलेआम अवहेलना की जा रही है.

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