Dhanbad: मार्क्सवादी समन्वय समिति (मासस) का सोमवार को भाकपा माले में विलय हो गया. इसके साथ ही 52 वर्ष से भी अधिक पुरानी पार्टी अब इतिहास के पन्नों का हिस्सा बन गयी. गोल्फ मैदान में आयोजित एकता रैली में विलय की औपचारिक घोषणा मासस के केंद्रीय कार्यकारी अध्यक्ष सह निरसा के पूर्व विधायक अरूप चटर्जी ने की.सोमवार को गोल्फ मैदान में माले व मासस की तरफ से आयोजित एकता रैली में दोनों दलों के समर्थक शामिल हुए. सभा में माले के दोनों सांसदों के अलावा बिहार व झारखंड के सभी विधायक तथा पोलित ब्यूरो सदस्य मौजूद थे. सभा को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित करते हुए माले के केंद्रीय महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि माले के संस्थापक चारू मजूमदार व मासस के संस्थापक एके राय की सोच व विचारधारा एक जैसी थी. दोनों ही एक-दूसरे को सहयोग करते थे. मासस की तरफ से विलय का प्रस्ताव आया, तो इसे सहर्ष स्वीकार किया गया. वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को झटका लगा है. अब मोदी सरकार मनमानी नहीं कर पा रही है. विपक्ष के मजबूत होने का असर है कि आज मोदी सरकार को वक्फ की जमीन को अधिग्रहित करने के लिए विधेयक को जेपीसी को भेजना पड़ा. जबकि कृषि कानून को मनमानी तरीका से पास कर दिया था. यूपीएससी को लैट्रल बहाली पर रोक लगानी पड़ी. इस वर्ष झारखंड सहित चार राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. भाजपा जोड़-तोड़ की राजनीति कर रही है. बगोदर के विधायक विनोद सिंह ने कहा कि मासस व माले के विलय का असर पूरे राज्य की राजनीति पर पड़ेगा.
Jharkhand politics: मासस का माले में हुआ विलय, दीपांकर बोले, दो वाम दलों के मिलन का पूरे देश की राजनीति पर पड़ेगा असर
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