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CM Hemant Age Controversy: सीएम हेमंत के हलफनामे पर विवाद, 5 साल में बढ़ गयी 7 साल उम्र, BJP ने उठाये सवाल, तो JMM ने किया पलटवार; पढ़ें क्या कहता है नियम?

Ranchi.सीएम हेमंत सोरेन की उम्र को लेकर राज्य में राजनीतिक बवाल शुरू हो गया है. दरअसल हेमंत सोरेन के वर्ष 2019 की एफिडेविट में उम्र 42 वर्ष दर्ज है. वहीं वर्ष 2024 की एफिडेविट में उम्र 49 वर्ष दर्ज है. इसे लेकर ही भाजपा ने एतराज जताया है. भाजपा ने आरोप लगाया है कि पांच साल में हेमंत सोरेन की उम्र सात वर्ष कैसे बढ़ गयी. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि हेमंत सोरेन कुर्सी जाती देखकर हड़बड़ी में हैं. वह पहली दफा तो चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. उन्हें पता है कि क्या भरा जाता है. इस समय उनकी स्थिति ऐसी हो गयी है कि वह गड़बड़ा गये हैं. वह अपनी उम्र तक तय नहीं कर पा रहे हैं. मुख्यमंत्री की कुर्सी जाती देखकर वह हड़बड़ी में आ गये हैं. उनको भी ध्यान में नहीं रहा होगा कि उन्होंने पहले क्या उम्र भरी थी और अब क्या भर रहे हैं. हम लोग तो एफिडेविट के आधार पर ही बात करते हैं.

जानें झामुमो ने क्या कहा?
उम्र विवाद पर झामुमो के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि हम लोग सब जानते हैं कि उम्र की बेसलाइन जन्म प्रमाण पत्र व मैट्रिक प्रमाण पत्र को ही मानी गयी है. इस पर हंगामा मचाया जा रहा है. जबकि भाजपा के लोगों को मालूम ही नहीं है कि हेमंत के नामांकन को स्वीकार कर लिया गया है. नामांकन स्वीकार किये जाने के बाद अब चुनाव की प्रक्रिया के बीच में कोई बाधा उत्पन्न नहीं हो सकती. ऐसा बचपना उन्होंने कोडरमा में भी किया था. भाजपा को पूछना ही है, तो चुनाव आयोग से पूछे. श्री भट्टाचार्य ने कहा कि जन्म प्रमाण पत्र और वोटर लिस्ट की आयु में हमेशा अंतर आ जाता है. यह बात चुनाव आयोग भी जानता है. दरअसल भाजपा के पास राजनीतिक तौर पर कोई मुद्दा ही नहीं है. बाबूलाल में हिम्मत थी, तो वह क्यों नहीं खुद बरहेट से लड़े. केवल बयानबाजी से कुछ नहीं होता. अब जबकि हेमंत सोरेन का नामांकन स्वीकार कर लिया गया है, तो भाजपा के लोग क्यों एतराज कर रहे हैं.

नियम में चुनाव लड़ने से रोकने का प्रावधान नहीं
दरअसल, गलत हलफनामा के खिलाफ चुनाव आयोग के अधिकार बहुत सीमित हैं. आयोग संपत्ति के आंकड़ों को इनकम टैक्स विभाग को भेज देता है, लेकिन बाकी हलफनामे की जांच तभी की जाती है, जब शिकायत मिलती है. कोई शिकायत न मिले तो ये हलफानामे कूड़े के ढेर जैसे ही हैं. अगर शिकायत में एफिडेविट गलत पाया भी जाए तो आयोग बहुत कुछ नहीं कर सकता. द रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल्स एक्ट (RPA) 1951 की धारा 125ए के तहत अधिकतम 6 महीने की सजा हो सकती है. जुर्माना भी लगाया जा सकता है, लेकिन कैंडिडेट को चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता. हालांकि, RPA का सेक्शन 8ए कहता है कि अगर उम्मीदवार करप्ट प्रैक्टिस करता हो, यानी रिश्वत या फिर वोट के लिए धमकियां देता हो तो उसे चुनाव लड़ने से रोका भी जा सकता है. इसी करप्ट प्रैक्टिस की परिभाषा पर विवाद भी है.

पार्लियामेंट्री कमेटी की सिफारिश पर नहीं लगी मुहर प्रत्याशियों के गलत जानकारी देने पर बहुत से नेताओं का मत है कि इसके लिए सजा बढ़ाई जानी चाहिए, खासकर आपराधिक मामलों को छिपाने वालों पर. साथ ही चुनाव लड़ने पर भी रोक लगनी चाहिए, लेकिन इस मामले में पार्लियामेंट्री कमेटी की सिफारिश पर अब भी मुहर लगनी बाकी है.

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