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Samvad-A-Tribal Day2: बिष्टुपुर के गोपाल मैदान में संवाद-ए ट्राइबल कॉन्क्लेव के दूसरे दिन सांस्कृतिक कार्यक्रम ने मन मोहा, जनजातीय संस्कृति की समृद्ध परंपराएं दिखीं

Jamshedpur. संवाद-ए-ट्राइबल कॉन्क्लेव के दूसरे दिन शनिवार को बिष्टुपुर स्थित गोपाल मैदान में सास्कृतिक कार्यक्रम ने हर किसी को मंत्रमुग्ध कर दिया. इस आयोजन में राज्य के विभिन्न जनजातीय समुदायों ने अपने दिलचस्प गीत-संगीत और नृत्य से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. संवाद- ए-ट्राइबल कॉन्क्लेव के दूसरे दिन जनजातीय कलाकारों की विशिष्ट प्रस्तुतियों का साक्षी बना. गोपाल मैदान के बीच में बने अखड़ा में मुंडा, हिमाचल की बोध और गोंड जनजातियों के कलाकारों ने अपने पारंपरिक नृत्य और गीतों से जनजातीय संस्कृति की समृद्ध परंपराओं को साकार किया.

उनके हर कदम और सुर में प्रकृति के साथ जुड़ाव और सामूहिकता की भावना का अहसास हुआ. इन नृत्य-गीतों ने केवल मनोरंजन ही नहीं किया, बल्कि जनजातीय जीवन के दर्शन और उनके सामाजिक ताने-बाने की झलक भी प्रस्तुत की. खासी जनजाति की एक्सपेरिमेंटल बैंड दी मिनोट की अनूठी प्रस्तुति ने पारंपरिक और आधुनिक संगीत के मिश्रण से समां बांध दिया. उनके मधुर स्वरों और वाद्ययंत्रों की धुनों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. इसके बाद राजू सोरेन के नेतृत्व में संताली आर्केस्ट्रा ने एक के बाद एक मनमोहक गीत और संगीतमय धुनों से माहौल को उल्लासपूर्ण बना दिया.

शुक्रवार को कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ टाटा स्टील के एमडी टीवी नरेंद्र, टाटा स्टील के उपाध्यक्ष चाणक्य चौधरी, धाड़ दिशोम देश परगना बैजू मुर्मू, हो समाज के पीढ़ मानकी गणेश पाठ पिंगुवा ने किया था. इस अवसर पर टाटा स्टील के एमडी टीवी नरेंद्रन ने कहा था कि संवाद कार्यक्रम हर साल करने का उद्देश्य जनजातीय समुदाय को प्लेटफॉर्म मुहैया कराना है. ट्राइबल एरिया के लोगों को इससे जोड़ा जाता है. यह सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं है, इसके माध्यम से दस साल से आदिवासी कला, संस्कृति और उनके स्वरोजगार को उपलब्ध कराने की कोशिश हो रही है, जिसमें सफलता भी मिली है. ट्राइबल आर्ट से लेकर उनके खानपान का संवर्धन किया जा रहा है.

इस संवाद कार्यक्रम में भारत की 168 जनजातियों के लगभग 2500 प्रतिनिधि उपस्थित थे, जिन्होंने अपनी अनमोल परंपराओं, कला और संस्कृति का प्रदर्शन किया. धरती आबा बिरसा मुंडा की जयंती पर आयोजित इस अनूठे जनजातीय सम्मेलन ने न केवल इतिहास के पन्नों से जुड़ी महाकविता की याद दिलायी, बल्कि जनजातीय समुदाय की मौलिकता, संघर्ष और आत्मनिर्भरता की आवाज को भी उच्चारित किया. यह आयोजन उस अदृश्य धारा को प्रकट करता है, जो सशक्त होकर जनजातीय समुदायों की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करती है.

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