नारकीय जीवन जीने के लिए बाध्य इन क्षेत्रों के आसपास टाटा की कई बड़ी-बड़ी कंपनियां है. इन कंपनियों के द्वारा सी.एस.आर. फंड के तहत यहां करोड़ों खर्च भी किए जाने का दावा किया जाता हैं,पर इन क्षेत्रों में आजादी के 75 वर्ष बाद भी यहां साफ-सफाई की व्यवस्था पटरी से उतरी ही पाई जा रही है.
इन क्षेत्रों में साफ-सफाई की व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए जिला प्रशासन,सांसद,विधायक एवं अन्य जनप्रतिनिधि द्वारा कोई सार्थक प्रयास न होने से यहां निवास करने वाले लगभग दो लाख से ज्यादा जनता नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं.
यहां जगह-जगह से कचरों का निष्पादन न होने से जिला प्रशासन, सांसद, विधायक एवं अन्य जनप्रतिनिधि के प्रति लोगों की नाराजगी देखी जाती है.
यहां आलम यह है कि कूड़े-कचरे के ढेर के कारण यहां पर लावारिस पशुओं का डेरा लगा रहता है जो कि स्कूली बच्चों,राहगीरों एवं वाहन चालकों के लिए परेशानी का कारण है.
इसके अलावा बारिश के दिनों में जगह-जगह पर कचरे के ढेर से बीमारी पनपने की आशंका बढ़ती ही जा रही है. इन क्षेत्रों में लगे गंदगी के ढेर के कारण लोगों का जीना दुभर हो गया है.
जिन दुकानों एवं घरों के आस-पास गंदगी के ढेर लगे हुए होते हैं,उनको हर समय बदबू के कारण नारकीय जीवन जीने को मजबूर होना पड़ता है.
सुबह के समय बच्चे, बूढ़े, जवान एवं महिलाएं मॉर्निंग वॉक करने निकलते हैं तो इनको शुद्ध हवा की जगह बदबू का सामना करना पड़ता है.
अगर जिला प्रशासन समय रहते इन क्षेत्रों में कचरा का निष्पादन करने में असफल रहते हैं तो यहां की जनता प्रदूषित हवा में सांस लेने की बीमारी समेत अन्य संक्रमण वाली बीमारियों का शिकार हो सकते हैं.
कुमार मनीष, 9852225588