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Maa Durga: भक्तों के बीच खुशियां बांट मां दुर्गे लौट गयीं कैलाश, भक्तों ने नम आंखों से किया विदा, अगले साल जल्दी आने की विनती की

  • सुवर्णरेखा और खरकई नदी के विभिन्न घाटों पर रविवार को 415 से अधिक दुर्गा मां की प्रतिमाओं के विसर्जन

Jamshedpur. शारदीय नवरात्र में नौ दिनों तक अपने मायके पृथ्वीलोक में भक्तों के बीच खुशियां बांटकर मां दुर्गे रविवार शाम प्रतिमा विसर्जन के साथ वापस कैलाश पर्वत लौट गयीं. पूजा पंडालों में बंगला परंपरा के अनुसार महिलाओं ने सिंदूर खेला की रस्म निभायी और मां दुर्गा को खोइछा दिया. माता का मुंह मीठा कराने व जल अर्पित करने के बाद प्रतिमा उठायी गयी. विदाई देते वक्त भक्तों की आखें छलक उठीं. भूल-चूक के लिए माफी मांगी गयी. अगले साल जल्दी आने के लिए विनती की गयी. महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर अखंड सौभाग्य की कामना की. इसके बाद गाजे-बाजे के साथ भव्य प्रतिमा विसर्जन जुलूस निकाला गया. इसमें सभी नाचते-झूमते तालाब तक पहुंचे और विधि-विधान के साथ प्रतिमाओं का विसर्जन किया गया.

शहर में आधे से अधिक पंडालों में शनिवार को ही महादशमी की पूजा संपन्न की गयी. इसके बाद महिलाओं ने मां का वरण कर एक-दूसरे को सिंदूर लगाते हुए अखंड सौभाग्य की कामना की. वहीं, रविवार को भी पंडालों में विधि-विधान के साथ वरण संपन्न हुआ.महादशमी के दिन मां को सिंदूर पहनाने के बाद उस सिंदूर को मां का आशीर्वाद माना जाता है. महिलाएं सिंदूर लगाते समय व मां का वरण करते समय अपने सुहाग की रक्षा के साथ अखंड सौभाग्यवती होने का वर मांगती है. इस मौके पर कुंवारी कन्याओं ने भी सिंदूर खेला में हिस्सा लिया और एक-दूसरे के चेहरे पर गुलाल लगाकर खुशियां बांटी.

सुवर्णरेखा और खरकई नदी के विभिन्न घाटों पर रविवार को 415 से अधिक दुर्गा मां की प्रतिमाओं के विसर्जन के साथ ही नवरात्र का समापन शांतिपूर्ण तरीके से हो गया. विसर्जन को देखने के लिए हुजूम उमड़ा था. भीड़ के कारण साकची मेन रोड में पैर रखने की जगह नहीं दिख रही थी. रविवार को 11 बजे से विसर्जन के लिए मूर्तियां नदी घाट पर आनी शुरू हो गयी थी. शनिवार को भी आदित्यपुर, टेल्को, परसुडीह, घाघीडीह व सोनारी की छह पूजा कमेटियों ने अपनी प्रतिमाओं का विसर्जन कर दिया था. ढोल-डंका बजाते हुए पूजा पंडाल से मां को विसर्जन के लिए लेकर झूमते हुए निकले लोगों ने विसर्जन के दौरान नम आंखों से मां को यह कहते हुए विदा कि कोई भूल हुई तो क्षमा करना, खुशियां प्रदान करना और अगले बरस फिर दर्शन देने आने मइया. देर रात करीब सवा ग्यारह बजे सभी प्रतिमाओं का विसर्जन संपन्न हो पाया.

विसर्जन के मार्ग और नदी घाट पर ड्रोन से नजर

विसर्जन घाट पर पर्याप्त रोशनी, बेरीकेडिंग, साफ सफाई, गोताखोर, लाइफ जैकेट, एंबुलेंस, पार्किंग आदि की व्यवस्था की गयी थी. विसर्जन के मार्ग और नदी घाट पर ड्रोन से हर पल की नजर रखी जा रही थी. बिष्टुपुर बेली बोधनवाला घाट पर कुछ मूर्तियों का विसर्जन हाइड्रा के सहारे किया गया, जबकि कुछ कमेटियों ने मूर्तियों के खंडित होने की बात कर कंधे पर उठाकर नदी में ले गये. वहां मौजूद केंद्रीय कमेटी व प्रशासनिक अधिकारियों ने कई कमेटियों को सुवर्णरेखा नदी घाट में जाकर विसर्जन करने का आग्रह किया. सुवर्णरेखा नदी के गांधी घाट पर लगातार माइक से उद्घोषणा की जा रही थी. घाट में मूर्तियां लेकर वाहन नदी किनारे तक जा रहे थे, वहां मूर्तियां उतार कर उनकी पूजा-अर्चना कर उन्हें विसर्जन के लिए नदी के बहते पानी में उतारा जा रहा था. साकची बंगाल क्लब से लेकर पुराना किताब दुकान तक मूर्तियों के वाहन के साथ-साथ निजी चार पहिया वाहन लेकर लोग पहुंच गये, जिसके कारण वहां यातायात व्यवस्था बिगड़ गयी. इसकी जानकारी मिलने पर उपायुक्त और एसएसपी खुद वहां पहुंचे. उन्होंने वहां अतिरिक्त बल की तैनाती करते हुए वाहनों को प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया. वहां फंसे हुए वाहनों को निकाला. मुख्य मार्ग पर विभिन्न समितियों द्वारा सहायता शिविर व खान-पान के शिविर भी लगाये गये थे.

घाट व जिला सर्विलेंस विभाग में तैनात रही मेडिकल टीम

मूर्ति विसर्जन को लेकर 19 जगहों पर डॉक्टर, स्वास्थ्य कर्मियों को एंबुलेंस के साथ तैनात किया गया था. रविवार को विसर्जन के दौरान सभी जगहों पर एंबुलेंस तैनात थी. इसके साथ ही जिला सर्विलेंस विभाग को नियंत्रण कक्ष बनाया गया था. उसमें डॉ असद, अरिजित डे, मनोज कुमार सिन्हा, प्रदीप कुमार महतो, किस्मत अली सहित अन्य लोगों को नियुक्त किया गया था.

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