झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के गृह जिले पूर्वी सिंहभूम के स्वास्थ्य विभाग के एक अवकाश प्राप्त अधिकारी (डॉक्टर) पैसा और पैरवी के बल पर किसी न किसी पद पर चिपकने हेतु प्रयासरत है। उनके नजदीकियों की मानें तो जिले के आला आईएएस अधिकारी का उसे सहयोग मिल रहा है, जिनका नजदीकी रिश्तेदार स्वास्थ्य विभाग के ही कर्मचारी रह चुके हैं और उक्त अवकाश प्राप्त डॉक्टर के वह पैरोकार हैं। बताया जाता है कि उन्हीं की पैरवी पर कोरोना महामारी से निपटने के लिए साकची के एक क्वार्टर में पूर्व खोले गये कैंप कार्यालय पर से स्वास्थ्य विभाग को अपना दावा छोड़ना पड़ा। यह दागी डॉक्टर शहर में उसी क्वार्टर में अपना ठिकाना बनाना चाहता है जिसमें उसे अफसर के सहयोग पर सफलता मिल भी चुकी है।
अब यह दागी अवकाश प्राप्त डॉक्टर अपने पैरवी और पैसे के जोर पर अनुबंध पर विभाग में येन-केन-प्रकरेन पद पाने की युगत लगा रहा। इस अवकाश प्राप्त डॉक्टर पर कई गंभीर आरोप है, जिसकी जांच प्रक्रिया में है, हालांकि चर्चा है कि उक्त भ्रष्ट और दागी अवकाश प्राप्त डॉक्टर ने मंत्री से लेकर प्रशासन तक सबको मैनेज कर लिया है इसलिए तमाम आरोप और शिकायतों के बावजूद उसकी जांच की फाइल नहीं खोली जा रही और लगातार ट्वीट पर ट्वीट से शिकायत दर्ज कराने के बावजूद स्वास्थ्य मंत्री और मुख्यमंत्री तक मौन हैं।
हालांकि झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री इसी जिले से आते हैं और किसी भी विवादास्पद अवकाश प्राप्त अधिकारी को जिले में एडवाइजर पद दिये जाने से उनके सरकार के मुखिया हेमंत सोरेन जी की किरकिरी होनी तय है, अगर ऐसा होता है तो तमाम अफसरों को मैनेज करने के बावजूद इन महाशय की एडवाइजर बनने की लालसा धरी की धरी रह सकती है l
चर्चा है कि उक्त भ्रष्ट और दागी अवकाश प्राप्त डॉक्टर ने मंत्री से लेकर प्रशासन तक सबको मैनेज कर लिया है इसलिए तमाम आरोप और शिकायतों के बावजूद उसकी जांच की फाइल नहीं खोली जा रही है. आलम है कि स्वास्थ्य मंत्री के आवास कदमा में एक फल विक्रेता द्वारा दुकान का नाम लिखने पर की गयी ट्वीट पर आनन-फानन में कार्रवाई करने वाले मुख्यमंत्री इस कदाचारी डॉक्टर के कारनामों से जुड़े लगातार किये गये ट्वीट पर मौन साधे हैं।
हालांकि उनके नजदीकियों का मानना है कि उन्होंने अपने कार्यकाल में हर असंभव कार्य को येन-केन- प्रकारेण अपने हिसाब से अपने पक्ष में किया है, पैसा और पैरवी के बल पर जमशेदपुर जैसे शहर में लगातार लगभग एक दशक तक आला पद पर जमा रहा। सत्ता के गलियारे में पकड़ होने के कारण कई सीनियर को पछाड़ कर जूनियर होने के बावजूद वरीय पद पर पदस्थापित हो गया l पूर्व में इन पर फर्जी प्रमाण पत्र एवं बिना विरमित हुए ही दूसरे जिले में पदस्थापित होने तक का मामला चला l अनुबंध पर नियुक्ति मामले में भी इनके कार्यकाल में येनयेन- केन -प्रकारेण वही नियुक्त हुए जिनका इन्हें आशीर्वाद प्राप्त था l
अब कोरोना की आड़ में यह भ्रष्ट अधिकारी आईएएस अधिकारियों को गुमराह कर जिला में अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर अपने खिलाफ चल रही तमाम जांच और अनियमितताओं को पर्दा डालने की तैयारी में जुटा है। ऐसा हो भी क्यों नहीं, क्योंकि उसने अपने कार्यकाल में की गयी तमाम अनियमिताओं में किसी न किसी रूप में प्रशासनिक अधिकारियों को भी भागीदार बना लिया है जो उसका रक्षा कवच बन सकते है। उसके खिलाफ जांच व कार्रवाई की रफ्तार किसी ने किसी रूप से आला प्रशासनिक अधिकारियों को भी झुलसा सकती है जिनकी अगुवाई में ही इस भ्रष्ट अवकाश प्राप्त डॉक्टर ने तमाम अनियमितताओं को बेखौफ होकर अंजाम दिया है, लिहाजा सब मिलकर उन अनियमितताओं पर पर्दा डालने में जुटे हैं।
अब देखना है कि झारखंड के युवा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कार्यकाल में यह महाशय रघुवर सरकार की भांति अपनी मनमर्जी चला पाते हैं या नहीं. अगर ऐसा हुआ तो भ्रष्टाचार के मामले में प्रशासन से लेकर सत्ता के गलियारे तक का यह गठजोड़ झारखंड के लिए अनूठा मामला होगा। ताे क्या यह गठजोड़ भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर सत्ता तक पहुंचे हेमंत सरकार के बेहतर व्यवस्था व सुशासन देने के दावों पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगा रहा है?